
रायपुर। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष एवं छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष विकास मरकाम ने शासकीय सेवकों के लिये पदोन्नति में आरक्षण के लाभ को आदिवासियों का संवैधानिक अधिकार बताते हुए कहा है कि प्रदेश में भूपेश बघेल सरकार के गलत निर्णयों के कारण आदिवासी वर्ग के शासकीय सेवक फरवरी 2019 से पदोन्नति में आरक्षण के लाभ से वंचित हो गये हैं। उन्होंने बताया कि भूपेश बघेल सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए पदोन्नति का नया नियम बनाना था ताकि पदोन्नति में आरक्षण का लाभ मिल सके परंतु कांग्रेस की ये सरकार इस पर गंभीर नहीं है।
उन्होंने बताया कि फरवरी 2019 में बिलासपुर उच्च न्यायालय ने जनरैल सिंह निर्णय के आधार पर छग लोक सेवा पदोन्नति नियम क्र. 5 को खारिज कर दिया था तथा प्रदेश सरकार को निर्देशित किया था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुरूप पदोन्नति नियम में सुधार कर लें ताकि पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिया जा सके। परन्तु प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने उच्च न्यायालय के इस निर्देश को दरकिनार करते हुये अक्टूबर 2019 में फिर से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के पदोन्नति के लिये पुराना वाला ही, जनसंख्या प्रतिशत के अनुसार आरक्षण और 100 पॉइंट रोस्टर उच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया। दिसंबर 2019 में उच्च न्यायालय ने इसे अस्वीकार करते हुये स्थगन आदेश दे दिया। जनवरी 2020 में उच्च न्यायालय ने पुनः स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के शासकीय सेवकों की पदोन्नति पर कोई स्थगन नहीं है लेकिन पदोन्नति, वरिष्ठता सह उपयुक्तता के आधार पर होगी आरक्षण के आधार पर नहीं। उच्च न्यायालय के इस टिप्पणी से प्रदेश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के हजारों शासकीय सेवकों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है जो कि आदिवासी बहुल हमारे राज्य के लिये चिंताजनक है। इसी प्रकार पिछले वर्ष जुलाई 2020 में अजा/अजजा/पिछड़ा वर्ग के क्वांटीफीबल डेटा तैयार करने के लिये मनोज पिंगुआ की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया परन्तु शासन द्वारा ये नहीं बताया गया कि ये समिति क्यों बनाई गई है? इसका क्या कार्य है? किस अवधि तक इनको रिपोर्ट देना है? अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं है। यदि यह समिति पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए डेटा एकत्रित करने हेतु गठित की गई है तो शासन के आदेश में इसका स्पष्ट उल्लेख क्यों नहीं किया गया है? वैसे भी पिछड़ा वर्ग के लिये पहले ही शासन ने पटेल कमेटी का गठन किया था उसे क्यों भंग नहीं किया गया।
भूपेश बघेल सरकार की मंशा वास्तव में पदोन्नति में आरक्षण देने की है तो माननीय सुप्रीम कोर्ट में जनरैल सिंह निर्णय के अनुसार प्रदेश सरकार को प्रत्येक संवर्ग में अजजा/अजा सदस्यों को अपर्याप्तता के आंकड़े जुटाने चाहिये तथा यह भी दिखाना चाहिये कि पदोन्नति से प्रशासन की कुशलता प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि शासकीय कर्मचारी उसी विभाग के हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार उपरोक्त आंकड़े जुटाकर छग लोक सेवा पदोन्नति नियम क्र.5 पूरे तथ्यों के साथ उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिये, ताकि अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति वर्ग के शासकीय सेवकों को पदोन्नति में आरक्षण का अधिकार मिल सके।
भाजपा के अजजा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को चेतावनी देते हुए कहा है कि उनकी सरकार के गलत निर्णयों के कारण आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के साथ हनन बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। उन्होंने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण कोई भीख नहीं बल्कि हमारा संवैधानिक अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।



