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यहां होती है चमगादड़ो की पूजा, सैकड़ों सालों से यहां के पेड़ों पर है विराजमान, जानें क्या है वजह

बिहार के ऐतिहासिक वैशालीगढ़ में चमगादड़ों की पूजा होती है. वहां मान्यता है कि चमगादड़ उनकी रक्षा करते हैं. इसके पीछे एक कहानी है. मध्यकाल में वैशाली में एक महामारी फैली थी जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई थी. इसी दौरान वहां बड़ी संख्या में चमगादड़ों ने रहना शुरू कर दिया. तब से वहां किसी प्रकार की महामारी नहीं आई. तभी से वहां चमगादड़ शुभ माने जाने लगे.

सैकड़ों साल से यहां पेड़ों पर रहते आए हैं चमगादड़
बताते चले कि वैशाली जिला का सरसई गांव चमगादड़ों की पूजा के लिए प्रसिद्ध है. यहां चमगादड़ों को शुभ मानकर उनकी पूजा की जाती है. हालांकि, तीन साल पहले जब निपाह वायरस ने अपने पांव पसारे थे तो इस गांव के लोग चमगादड़ से बचने का उपाय ढूंढने लगे थे. उस वक्त, सभी ग्रामीण निपाह वायरस की वजह से डरे हुए थे. दरअसल ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव में चमगादड़ सैकड़ों सालों से पेड़ों पर रहते आए हैं.

चमगादड़ को लेकर गांववालों की ऐसी है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि इन चमगादड़ों की वजह से इस गांव में कभी कोई गंभीर बीमारी नहीं फैली. उनका मानना है कि इस गांव के आसपास के गांवों में कई बार लाइलाज गंभीर बीमारियां फैल चुकी हैं जिसकी वजह से कई जाने भी गईं लेकिन सरसई गांव में चमगादड़ों के कारण कोई बीमारी नहीं फैली. वैसे भी प्राकृतिक रूप से वीरान और उजड़े हुए क्षेत्रों में रहने वाले चमगादड़ (फ्रूट बैट्स) अगर हम मनुष्यों के पास आ पहुंचे हैं, तो इसके लिए भी हम ही जिम्मेदार हैं. फलों पर निर्भर रहने वाला यह जीव घटते जंगलों और भोजन की खोज में रहवासी इलाकों में ठिकाना बनाने लगा है.

मान्यताओं में है बेहद अंतर
जहां प्राचीन भारतीय मान्यताओं में चमगादड़ की घर में मौजूदगी अशुभ मानी जाती है, वहीं फेंगसुई मान्यता के अनुसार यह सुख और समृद्धि तो लाता ही है आपको दीर्घायु भी बनाता है.

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