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देश के इतिहास में पहली बार हुए ‘ब्लैकआउट’ के समय ऊर्जा मंत्री रहे सुशील कुमार शिंदे का सफरनामा


Sushil Kumar Shinde (img: tw)

नई दिल्ली, 4 सितंबर : एक अगस्त की सुबह एक प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार के फ्रंट पेज पर एक हेडलाइन छपी, जिसमें लिखा था, ‘इंडिया हैव लार्जेस्ट ब्लैक आउट इन द वर्ल्ड एंड पावर मिनिस्टर गॉट प्रमोटेड’. इस खबर का संदर्भ भारत में 30 जुलाई 2012 में हुए विश्व के सबसे पावर ग्रिड फेलियर से था. इस पावर ग्रिड फेलियर की वजह से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश में एक साथ बिजली गुल हो गई थी, जिससे 36 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. बिजली ठप होने के कारण चाहे औद्योगिक गतिविधियां हो, ट्रेनें हो, लोगों के घर हो या कुछ और बिजली से चलने वाली कोई भी चीज अगले कई घंटों के लिए ठप हो गई थी.

देश में हुए इस बड़े ब्लैकआउट के समय केंद्रीय ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे थे. देश में इस समय एक और बड़ी घटना घटी, जब कांग्रेस के तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने से तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम को वित्त मंत्री के तौर पर प्रमोट किया गया. इसके बाद सुशील कुमार शिंदे को ऊर्जा मंत्री से गृह मंत्री बनाया गया. गृह मंत्री का पद संभालने के बाद ग्रिड फेलियर की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि बिजली की समस्या सिर्फ भारत में ही नहीं हुई है, अमेरिका और इंग्लैंड जैसे बड़े-बड़े देशों ने भी इस समस्या को झेला है. यह भी पढ़ें : सरकार का लक्ष्य अगले कुछ वर्षां में एल्कोहल युक्त पेय पदार्थों का निर्यात एक अरब डॉलर तक पहुंचाना

कभी महाराष्ट्र पुलिस में सब इंस्पेक्टर रहे सुशील कुमार शिंदे को राजनीति में लाने का सबसे बड़ा श्रेय शरद पवार को जाता है. इस बात का जिक्र करते हुए शरद पवार ने बताया था कि सुशील कुमार शिंदे ने उनके कहने पर पुलिस विभाग की नौकरी छोड़ी थी. उन्होंने सुशील कुमार शिंदे को आश्वासन दिया था कि उन्हें उपचुनाव में विधायक का टिकट मिलेगा. लेकिन उन्हें जब टिकट नहीं मिला तो उनकी आंखों में आंसू आ गए थे. इसके बाद शिंदे को सरकार में उन्होंने सरकारी वकील बनाया था. हालांकि, अगले चुनाव में शिंदे को टिकट मिला और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

वह पांच बार महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य रहे. 1992 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया, जिसके बाद वह पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी लोगों में शामिल हो गए. 1999 में उन्हें अमेठी में सोनिया गांधी के प्रचार का प्रभारी बनाया गया और यहां से शुरू हुआ उनका गांधी परिवार से नजदीकियों का सिलसिला.

उनके गांधी परिवार से नजदीकियों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2002 में उन्हें सीधे एनडीए के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार भैरोसिंह शेखावत के खिलाफ उपराष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस समर्थित दलों के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ाया गया. हालांकि, इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वह जनवरी 2003 और नवंबर 2004 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे.

2004 में कांग्रेस सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद उन्हें गांधी परिवार से नजदीकियों का इनाम मिला. उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया. हालांकि, कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी उठापटक के बाद 2006 में उन्हें राज्यपाल के पद से इस्तीफा दिलाकर केंद्रीय ऊर्जा मंत्री बनाया गया. 2006 में वो एक बार फिर राज्यसभा के सदस्य बने और फिर उन्हें केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार में ऊर्जा मंत्री बनाया गया. 2023 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके ये दिग्गज कांग्रेसी नेता 2012 में उस समय देश की राजनीति में सबसे बड़ी चर्चा के केंद्र में रहे थे, जब उन्हें उत्तर भारत में ग्रिड फेलियर के अगले ही दिन ऊर्जा मंत्री से गृहमंत्री बना दिया गया था.




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