इस देश में लड़कियां क्यो सुरक्षित नहीं हैं यह अब यक्ष प्रश्न है। असली कारण तो कई बार यह लगता है कि कोई भी दल इस समस्या का हल नहीं चाहता। सबको इसकी राजनीति जो करनी है। बस तेरा बलातकार बलात्कार मेरा बलात्कार छोटा बलात्कार इसी ढर्रे पर यह लोग चल रहे है । संवेदन हीन लोग राजनीति कर रहे हैं। इसकी गंभीरता से इन्हे कोई लेना देना नही रहता। जब अपराधी ही राजनीति करे तो क्या उम्मीद की जा सकती है। ऐसा नही कि इन दलों को अपने मनचले नेताओं के बारे मे मालूम नहीं रहता पर सब मौन धारण किये रहते है । जब तक गंभीर अपराध हो न जाये तब तक प्रतीक्षा की जाती रहती हैं। इसके बाद भी हाल यह है कि बेशर्मी से पहले इस मामले को दबाने की कोशिश की जाती है नहीं दबता तो फिर जांच की बात की जाती है। दुर्भाग्य से इस तरह की घटनाओं मे इन्हे पीडिता को न्याय देने के बदले अपने राजनीतिक वजूद की चिंता ज्यादा सताती है इसके चलते यह दुर्भाग्य पूर्ण घटना सियासतदानों के लिए फूटबाल के खेल से ज्यादा महत्व इनके लिए नहीं रहता। यह कटु सत्य है कि इन घटनाओं के लिए जो संवेदना चाहिए रहती है उसका अभाव इनमें साफ दिखाई दे रहा है यह देश को मालूम होते रहता है। यह राजनीतिक बिरादरी के लोग अपने विरोधियों के सरकारो के बलात्कार पर ध्यान देने के बदले अपने शासन के बलात्कार पर ही इमानदारी से ध्यान दे तो सब समस्या अपने आप हल हो जाएगी। अभी देश में घटित घटनाओं मे इन्हे दलों द्वारा कहीं यह चिंता नजर न आई कि कोई अपने शासित राज्यों की बात करता । फिर बलात्कार पर मसालेदार न्यूज कैसे परोसी जाती है अपने तथाकथित टीआरपी के लिए संवेदनहीनता की परिकाषठा को इन मीडिया ने कैसे निरलजजता से पार करते है यह देश ने देखा है। साहब इनके रिपोर्टिंग से तो बेशर्म भी शर्मसार हो जाए । इनके रिपोर्टिंग की खासियत रहती हैं कि यह पीडिता को ही बार बार लज्जित और जलील करते है । वहीं अगर पीड़ित परिवार हिम्मत कर घटना की रिपोर्ट करने जाएगा तो हालात ऐसे रहते है कि जैसे पहले के समाचार आए हैं कि रिपोर्ट लिखने मे ही आना कांनी की जाती हैं। कई बार तो यह घटना इनके लिए हाटकेक बन जाती है । फिर लिखने के पहले से ही लार टपकाने लगती है कहीं आर्थिक फायदा देखने लगते है तो कहीं फिर से वही प्रताड़ित कर दिया जाता है। इन सबको भी किसी ने पार कर लिया तो अभियुक्तों के विद्वान अधिवक्ता अपने मुवककिल को न्याय दिलाने के नाम से फिर उस पीडिता को उसी मानसिक तकलीफ से गुजारने मे अपनी विधिक महारथ समझते है । कई बार तो यह महसूस होता है कि इन संवेदन हीन बिरादरीयो का यह ध्येय रहता है कि इस पीडिता को इंसाफ न मिले। खुदा न खास्ता किसी को न्याय मिल गया और कहीं फांसी हो गई तो फिर क्या है यह पूरी मानवाधिकार की कौम विधवा विलाप करते हुए सडकों पर आ जायेंगे। उन्हे उनके अपराधो पर तो कोई कुछ कहना नहीं है पर उनके मानवाधिकार के लिए पूरी कानूनी लडाई लडकर इस घटना से प्रभावित परिवारों को रोज मानसिक रूप से मारने का काम करते हैं। निर्भया केस मे देश ने देखा है कितनी बार फांसी टली है यह भी मजाक बनता जा रहा था। मुझे क्या पूरे देश को हैदराबाद की घटना से गर्व महसूस हुआ कि ( भले वो असंवैधानिक ) हो पर आम लोगों को इसमें न्याय दिखा । जब फास्ट ट्रैक न्यायालय भी न्याय काफी समय बाद दे तो उसे न्याय कैसे समझा जाये ? आज नवरात्रि के समय हम देवी की पूजा करते हैं कन्याओं को देवी का दर्ज़ा देते है। ऐसे मे हमारे देश में ऐसी घटनाओं का घटित होना हमारे लिए शर्म का विषय है। यह घटना उस दिन दम तोड़ देगी जिस दिन इसका राजनीतिक नफा नुकसान नहीं देखा जाएगा। यह घटना उस दिन दम तोड़ देगी जिस दिन किसी भी नेता के चरित्र से जब अश्लीलता का धुआं उडने लगे और यह राजनीतिक दल बगैर नफा नुकसान के उक्त नेता को दल से ही निकाल दे । यह घटना उस दिन दम तोड़ देगी जिस दिन अधिकारी पूरी इमानदारी से संवेदनशील होकर अपना काम करे । यह घटना उस दिन दम तोड़ देगी जिस दिन अभियुक्तों को न्याय दिलाने के नाम से वकील ही न मिले। यह घटना उस दिन दम तोड़ देगी जिस दिन कोई मानवाधिकार वाले मानव अधिकार के लिए सामने न आये । पर क्या यह संभव है ? कुछ नहीं अब हर बच्चियों को अपने सुरक्षा के लिए खुद को सक्षम बनाना होगा उसे चंडी का अवतार बनना होगा जिससे यह राक्षस पैरों के नीचे दिखने लगेंगे। वहीं शासन को इन बच्चियों के आत्म रक्षार्थ हथियार रखने की स्वीकृति भी देनी होगी। जब अपराधियो को अपने जान के वाले पडने लगेंगे तब यह लोग अपने आप लाइन मे आ जाऐंगे। जहां इन्हे हर लडकी बहन दिखने लगेगी। शायद यही इस बलातकार का वैक्सीन है । बस इतना ही डा . चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ
Web title – Article – Why are girls not safe in this country Question Dr. Chandrakant Ramchandra Wagh



