
एक कहावत है “जीवन पथ जहां से शुरू होता है, वो राह दिखाने वाला ही गुरु होता है”..वाकई जीवन मे गुरु का महत्व सभी से बढ़कर है….ऐसा इसलिए क्योंकि बालोद जिले में एक ऐसा शिक्षक भी मौजूद है.जिसको रास्ते पर चलने के लिए सहारा तलाशना पड़ता है.लेकिन बीते 12 सालों से नौनिहालों को भविष्य गढ़ने का रास्ता बता रहा है।
वीओ. कहते हैं दुनिया मे गुरु का दर्जा भगवान से ऊपर होता है.इस वाकिये को साकार करके दिखाया है बालोद जिले के देवपांडुम गांव के शासकीय स्कूल में पदस्थ शिक्षक बालमुकुंद ने.बचपन से दोनों आंख दिखाई नहीं देता फिर भी जिंदगी से हार नहीं मानी…..और कुछ करने की चाह रखी….. प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में दृष्टिबाधित स्कूल में पढ़ाई की और शिक्षक बना. वर्ष 2008 में उन्होंने देवपांडुम गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ना शुरू किया…..आंख नहीं दिखता इसीलिए ब्रेललिपि वाली पुस्तक मंगाई…..और अब तक लगातार 12 सालों से बच्चों के भविष्य गढ़ने में अपनी अहम हिस्सेदारी निभा रहे हैं….
वीओ. बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्हें एक विशेष तरह के पुस्तक की आवश्यकता पड़ती है.कुछ साल पहले जो सिलेबस हुआ करता था वह अब बदल गया है.जिसके चलते उन्हें नए सिलेबल वाले पुस्तक की आवश्यकता है. जिसको लेकर लगातार 2 सालों से शिक्षा विभाग के पास पुस्तक की मांग करते आ रहे हैं…..2 साल बीत जाने के बाद भी अब तक उन्हें पुस्तक नहीं मिल पाया… लेकिन बच्चों का भविष्य जो करना है तो पुराने पुस्तक से ही काम चलाना पड़ रहा है.. शिक्षक बालमुकुंद के हौसले ने उनकी उम्मीदों को एक नई पंख तो दे दी है…..तो वहीं शिक्षक की कार्यशैली को देख हर कोई उनकी प्रशंसा कर रहा है.लेकिन आज तक इनकी कार्यशैली शासन प्रशासन की नज़रों से ओझल है.
इंडिंग. जब वह अपने स्कूली जीवन मे था और अपना भविष्य गढ़ रहा था…. तो संसाधनों की भी कमी थी.लेकिन उनके हौसले के सामने यह कमी फीकी पड़ गई.और आज आंख में रौशनी नहीं होने के बावजूद अपने अंदाज से लोगों के लिए एक प्रेरणाश्रोत बन चुका है।