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विशेष लेख – किसान आंदोलन का हश्र यही होना था, तुम्हारी भी जय जय हमारी भी जय जय

किसान आंदोलन का हश्र यही होना था । तुम्हारी भी जय जय हमारी भी जय जय । किसानों ने जितना आंदोलन लंबा किया उतनी ही उनकी पकड़ इस आंदोलन से ढीली होती चली गयी। हालात तो यह हो गये कि किसान आंदोलन के साथ दूसरी राजनीतिक मांग भी जाने अनजाने मे जुडती चली गई। जिसका इस आंदोलन से कोई लेना देना नही था । वहीं किसान संगठन राजनीतिक नेताओं और दलों के चाणक्य नीति के कारण हासिये मे जाने लगे । जो दल व नेता अपने पुराने वयकतवय मे आज की मांग करते नजर आये और अब इस आंदोलन से जुड़ गए तो विश्वसनीयता की कमी नजर आने लगी । दुर्भाग्य से इन आंदोलन कारियों ने इन पार्टियों का समर्थन लेकर अपने लिये एक मुसीबत ही बुला ली । जहां किसान संगठन अपनी मांग पूरी कर समझौता कर जल्दी समेटने के पक्ष में थे वहीं इन दलों को आंदोलन लंबे समय तक खींचने के पक्ष में थे। वहीं इतने ठंडे मे आंदोलन को जारी रखना भी काफी मुश्किल होते जा रहा था । लंबी वार्ता से किसान भी उब चुके थे । वहीं आंदोलन मे राजनीतिक असामजिक तत्वो के नारे जहां आपतिजनक थे वहीं वार्ता के लिए होने वाले माहौल में बाधा जनक थे । किसानों और किसान संगठन का किसी भी पार्टी से लेना देना नही था । इसलिए इस तरह के वाकयो से वो भी परेशान थे । आपको जिनसे मांग पूरी करवानी है फिर उन्हे ही अपशब्द कहे और गाली दे तो बातचीत तो संभव हो नहीं हो पातीं। किसानो को भी लगने लगा कि यह आंदोलन दिशाहीन होते जा रहा है । वहीं मोदी जी के विरोध का जमावड़ा और उनके द्वारा जो फाइव स्टार की खातिरदारी ने भी पूरे देश को अचंभे मे डाल दिया। जिस तरह से आटोमेटिक रोटियां बन रहीं थी वहीं मिनटों मे पांच हजार कप काफी बन जाना आंदोलन स्थल पर सूखे मेवे रखे गये और वितरित किये गये तो इस आंदोलन के पीछे कौन लोग हो सकते हैं इसे देश ने भी समझ लिया। वहीं वार्ता के बीच मे आंदोलन का हिंसक हो जाना और रिलायंस के टावरों को क्षति पहुंचाने का काम काफी निंदा जनक था । ऐसे स्थिति मे किसानो को जो समर्थन देश से मिलना था उसका अभाव नजर आने लगा । मीडिया में भी यह लोग बेनकाब होते चले गये । वहीं जिन नेताओं ने समर्थन किया और आंदोलन को खडा करने की मदद की ऐसे नेता भी जब आंदोलन से अपने निजी काम के नाम से भाग खडे हुए तो आंदोलन कारियों को जरूर निराशा आई होगी। इन सब बातों ने इनको एक बारगी सोचने को मजबूर किया होगा। वहीं शासन के मंत्रियों ने भी अपने को बहुत परिवर्तित किया। यही कारण है कि इस बार मंत्रियों ने उन्ही के साथ भोजन कर माहौल को नर्म किया। पचास प्रतिशत मुद्दे सुलझ गये । अब बाकी मुद्दे पर पुनः चर्चा की बात कही गई है । निश्चित उन लोगों को बहुत निराशा होगी जिन्होने इसे शाहीन बाग वाला माॅडल बनाने की रूपरेखा तैयार की थी । इस हालात में समझौता बिलकुल अपने पूर्णता की ओर है । वहीं प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी किसानों के लिए अनेक लोक कल्याण कारी योजनाओ को अमल में लाकर सरकार की मंशा जाहिर कर दी । निश्चित चार जनवरी की पुनः सातवे दौर की बातचीत अंतिम वार्ता हो जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। सरकार के धैर्य की सराहना करनी होगी कि उनहोंने किसानों को विश्वास मे लेने के लिए अपने सभी दरवाजों को खुला रखा था । एक बार फिर मोदी जी की सरकार उस चक्रव्यूह से निकलने मे सफल होगी जो बहुत चतुराई से निर्मित किया गया था। बस इतना ही
डा . चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

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