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संपादक की कलम से – प्रिय अमरजीत भगत जी.. आप सच में कमाल तो बेमिसाल करते हैं..

रायपुर,6 जून 2021।कांग्रेस की बहुतेरी खूबी है, और ढेरों विशेषताएँ जैसे कि जब विपक्ष नख दंत विहीन हो तो विपक्ष की भुमिका कांग्रेसी आपस में ही मुकम्मल निभा लेते हैं। कांग्रेस इसे बड़े परिवार के बीच होने वाली सामान्य उठापटक बताती है और गर्व से पगे स्वर में कहती है कहीं कोई गुटबाज़ी नहीं। सियासत की कठपुतलियाँ गजब नाच दिखाती हैं। छुपा कुछ भी नहीं है कि कठपुतलियों के तार किन उँगलियों से बंधे होते हैं, लेकिन जैसा कि तमाशों की खुबसूरती है कि वे दर्शक को बांध लें तो मजमा भी ठीक जुटता है और तमाशा भी खूबसूरत होता है, बस कठपुतलियों की डोर और जिन उँगलियों में यह डोर बंधी है, वह ना दिखे यह सावधानी जरुरी है, दरअसल उससे नज़र केवल कठपुतली पर रहती है। धागा और उंगली पहचानी जाने लगे तो तमाशे का आनंद बाधित होता है।

सर्वाधिक अनिश्चित और अविश्वसनीय राजनीति के पुरोधा और मानक बन चुके जोगी की सियासती नर्सरी के सूरजमुखी फूल अमरजीत भगत मंत्री मंडल का सदस्य बनते ही सरगुजा की राजनीति में मुखर हैं।मुखर तो ख़ैर वे शुरु से रहे हैं, पर इस दौर में मुखर के मायने उनके समर्थक उस सरगुजा में शक्ति स्तंभ के रुप में मानते समझते और प्रचारित करते हैं, जहां शक्ति स्तंभ का मतलब माना जाता है सरगुजा पैलेस।वहीं कबीर और रहीम के दोहों के सहारे अपनी बात कहते अमरजीत खुद को सीधा सहज बताने की साबित करने की मुकम्मल क़वायद करते हैं लेकिन यह खुला रहस्य है कि मंत्री अमरजीत भगत का अंदाज़े बयां सरगुजा पैलेस को चिढ़ाता है।उचकाने चिढ़ाने और पटकनी देने का तमाशा दोनों ओर से जारी है, लेकिन यह एक और भोलापन है कि इसे सार्वजनिक रुप से दोनों पक्षों में कोई नहीं स्वीकारता।
लेकिन ये अमरजीत हैं, जिन्हें खूब मालूम है कि सलीका केवल बात कहने का ही नहीं होता, सियासत का भी होता है। सो सवाल आप कुछ लाएँ अमरजीत के पास जवाब बिलकुल सधा होता है, और हर बार होता है।

सरगुजा में सियासती लहरें बेहद तेज हैं,और गहरी भी, दूर से देख आप लहरों के वेग और तेज का अंदाज नहीं लगा सकते, लेकिन हालिया मसला उस आंदोलन से सतह पर आया जिसमें कांग्रेस की ओर से महंगाई पर विरोध करने का कार्यक्रम था। कोविड को लेकर अनिवार्य रुप से पालन करने वाले अनुशासन के साथ यह प्रदर्शन कांग्रेसियों को अपने अपने घर पर या किसी निर्धारित स्थल पर करना था। सरगुजा कांग्रेस संगठन ने अपने अपने घरों के बाहर कोविड अनुशासन के पालन के साथ धरना प्रदर्शन किया, नारे बाज़ी का मसला नहीं था, हालाँकि राजनीति में नारे भी ना लगें तो क्या ही राजनीति हालाँकि यह भी है कि भला कौन समझदार अपने ही घर के सामने नारे लगाता है। लेकिन यह भी मसला है कि कई बूजूर्ग जो कि बिलाशक समझदार ही थे उन्होंने कहाँ राजनीति को ही सही माना,बहरहाल..

महंगाई के विरोध में धरना हुआ बिलकुल वैसा ही जैसा कि होना था। बस मंत्री भगत जी के यहाँ वैसा ना हुआ।मंत्री भगत जी के निवास पर मजमा ही जूट गया। ज़बर नारेबाज़ी के बीच केंद्र सरकार की लानत मलामत के साथ धरना समाप्त भी हो गया, धरना तो समाप्त हुआ लेकिन चर्चाएँ शुरु हो गईं। इस धरने को मुकम्मल वही माना गया जो कि माना जाना था, याने शक्ति प्रदर्शन।

मंत्री अमरजीत भगत से सवाल हुआ
“विरोध प्रदर्शन तो अपने निवास पर करना था.. ये भीड़ की क्या मजबूरी हो गई”
मंत्री भगत का जवाब आया
“अब मेरे समर्थक जुट जाते हैं तो भला मैं क्या करुं”
और ठीक इसके बाद जबकि यह सवाल हुआ कि
“यह बस प्रदर्शन था या शक्ति प्रदर्शन,क्या किसी को चिढ़ा रहे थे”
खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने दोहा टिका दिया –
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय”
मायने ये हैं कि मंत्री अमरजीत भगत समर्थकों के साथ डट कर धरना प्रदर्शन किए, बिलाशक शक्ति प्रदर्शन था, पर इसे स्वीकारा क्यों जाए तो जवाब दोहे के रुप में आया जिसके मायने यह है कि यह तो मंत्री और उनके समर्थकों का प्रेम है कि जुट गए इसमें सियासत के विद्वत जनों को कोई और विद्वता नहीं देखनी चाहिए।कहाँ का शक्ति प्रदर्शन और कैसा प्रदर्शन..!
वाक़ई कितनी सहजता से बात कही गई, लेकिन इसे समझने के लिए कि वे कितनी सहजता से बात कहते हैं और कितने मुलायम शब्दों में कूटनीति और वफ़ादारी दिखाते हैं इसके लिए अमरजीत के उन शब्दों को ध्यान से पढ़ना होगा जो उन्होंने तब कहे जबकि ढाई बरस पर बदलाव का सवाल आया। मंत्री अमरजीत भगत के बोल थे

“ देखिये ये तो मेरा विषय नही है जिस विषय से मेरा कोई ताल्लुकात नही है उसपर मैं बोलना नही चाहता ।परन्तु जहां भी जिसकी भी सरकार रहती है और फूल मेजोरिटी में रहती है तो 5 साल चलती है….मुख्यमंत्री जी का बहुत नाम हो रहा है ।इसमें मुझे कुछ ऐसा लगता नहीं है…बाकी जिस बैठक मे मैं नही था मेरे सामने कुछ बात नही हुई उसके बारे में हम कुछ नही कह सकते और बाकी सरकार अच्छी चल रही है….”

बहरहाल जैसा कि शुरु में लिखा गया है जब विपक्ष कमजोर हो तो कौरवी संग्राम खुद कांग्रेस में शुरु हो जाता है, यह मसला भी वैसा ही है। जानना यह भी कठिन नहीं है कि राजनीति के रंगमंच पर जो हो रहा है, उसकी डोर कहाँ है और किन हाथों में है,सियासत में डोर किसकी उँगलियों में है यह छूपे रहे यह बेहतर होता है.. लेकिन लगता है यहाँ चूक हो गई है।
सर्वशक्तिमान रहे सरगुजा पैलेस को उसके घर में ही घेरने की क़वायद, सधे तरीक़े से प्रश्नांकित करने की कोशिश से भला फ़ायदा किसे होना है..! कठिन थोड़े ही है समझना। लेकिन क्या ये घेरना इतना आसान है .. इसका जवाब भी इतना कठिन थोड़े ही है।
हालाँकि बतौर छात्र मैं यह याद रखता हूँ राजनीति कला भी है और विज्ञान भी और इसलिए राजनीति में निश्चित,संभव और विश्वसनीय कुछ भी नहीं होता और ना ही है,यह सीखने का दौर है, जो मंथन हो रहा है जो क़वायद हो रही है उसके नतीजे मुझ जैसे छात्र को बौद्धिक रुप से समृद्ध ही करेंगे।
और प्रिय अमरजीत भगत जी.. आप सच में कमाल तो बेमिसाल करते हैं..

याज्ञवल्‍क्‍य याज्ञवल्‍क्‍य वशिष्ठ वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं उनके द्वारा लिखित साभार

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