
संपादक की कलम से – बलरामपुर पुलिस के 25 मई को कथित तौर पर माओवादी बता कर बरियों में पकड़े गए अनिल यादव और बरियों में ही लंबे अरसे से ढाबा और क्रेशर संचालित कर रहे रविंद्र शर्मा को शहरी नेटवर्क का हिस्सा बता कर प्रचारित करते हुए गिरफ़्तारी कर जेल भेजे जाने के दावे पर तमाम सवाल उठने लगे हैं।
मानवाधिकार संगठन नंगे पाँव सत्याग्रह के संयोजक राजेश सिंह सिसोदिया ने पुलिस के पूरे दावे को फ़र्ज़ी बताते हुए आईजी समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिख कर मामले की जाँच कराने की माँग की है।

बलरामपुर पुलिस की ओर दो विज्ञप्तियाँ जारी की गई, पहली विज्ञप्ति में यह बताया गया कि झारखंड निवासी अनिल यादव सामरी में हुई आगज़नी वारदात में वर्ष 2019 से वांछित है और उसके नाम पर वारंट है। पुलिस ने इस विज्ञप्ति में दावा किया कि, अनिल यादव माओवादी है।इस विज्ञप्ति में यह दावा किया गया कि, अनिल यादव को बरियों के पास स्थित ढाबे से गिरफ़्तार किया गया है।इस मामले में बलरामपुर पुलिस ने ढाबा और क्रेशर संचालक रविंद्र शर्मा के विरुद्ध भी अपराध पंजीबद्ध किया। पहली विज्ञप्ति में ढाबा संचालक के विरुद्ध आबकारी एक्ट, आर्म्स एक्ट महामारी एक्ट के तहत कार्यवाही की गई।

इस मसले को लेकर एक और विज्ञप्ति कल जारी की गई जिसमें यह दावा किया गया कि, ढाबा संचालक रविंद्र शर्मा माओवादियों के शहरी नेटवर्क का हिस्सा था, जिसे पुलिस ने पकड़ कर ऐतिहासिक सफलता हासिल की है।पुलिस की विज्ञप्ति में यह भी दावा है कि रविंद्र शर्मा की निशानदेही पर जिलेटिन डेटोनेटर वायर जप्त किया गया है, और प्रकरण में धारा 5 विस्फोटक अधिनियम और धारा 9 ख (2) विस्फोटक अधिनियम जोड़ा गया।

पुलिस के इस बरियों प्रकरण को लेकर शुरु से सवाल उठ रहे हैं।जिसे माओवादी अनिल यादव बताकर पकड़ा गया, दरअसल वह कभी शीर्षस्थ माओवादी रहे लेकिन बाद में सार्वजनिक जीवन में तीन चुनाव जिनमें एक लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव लड़ चुके रंजन यादव का पुत्र है, जिसके विरुद्ध झारखंड में नक्सली इतिहास तो दूर अपराधिक इतिहास तक मौजुद नहीं है। छत्तीसगढ के जिस सामरी मामले में पुलिस ने रंजन यादव और उसके पुत्र अनिल यादव को अभियुक्त बनाया है, उसे लेकर भी तमाम सवाल लगातार उठते रहे हैं। बहरहाल सामरी मामले में रंजन यादव रामानुजगंज जेल में हैं।

जिस ढाबा संचालक को बलरामपुर पुलिस ने शहरी नेटवर्क का प्रमुख बताते हुए ध्वस्त करने का दावा किया है और उससे जिलेटिन तार और डेटोनेटर की बरामदगी बताई है, वह बरामदगी भी सवालों के घेरे में है। मानवाधिकार कार्यकर्ता राजेश सिंह सिसोदिया ने पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को लिखे पत्र में क्रेशर और ढाबा संचालक रविंद्र शर्मा को शहरी नेटवर्क का हिस्सा बताए जाने के दावे और विस्फोटक बरामदगी के दावे को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए हैं।
राजेश सिंह सिसोदिया ने पूछा है – “क्रेशर संचालक रविंद्र शर्मा के पास डेटोनेटर या कि जिलेटिन होना कौन सी बड़ी बात है.. बशर्ते यह बरामद की गई होती.. हमारे पास ग्रामीणों के हवाले से सूचना है कि कोई बाईक सवार उस जगह पर कुछ फेंक कर पहले भागा और ठीक पीछे पुलिस आई”
सामाजिक कार्यकर्ता सिसोदिया ने मीना खलखो हत्याकांड का ज़िक्र करते हुए बलरामपुर पुलिस पर फ़र्ज़ी कार्यवाही का आरोप लगाया है। कथित नक्सली के पकड़ाए जाने का यह वही मामला है जिसमें पुलिस मुख्यालय से ओ पी पॉल को हैलीकाप्टर से जाना पड़ा था, तब यह दावा प्रचारित किया गया था कि बहुत बड़ी सफलता मिल गई है लेकिन DIG ओ पी पॉल ने इस मसले को लेकर कहा कि “हाँ गए थे.. पर किसी दूसरे काम से गए थे.. किसी को पकड़े तो हैं कौन है क्या है ये ज़िले वाले ही बता पाएँगे”
इस मसले को लेकर कप्तान रामकृष्ण साहू ने कहा कि “हमने वारंटी को पकड़ा, जिसका प्रकरण नक्सली घटना से संबंधित है, मामले में जनसुरक्षा अधिनियम भी है, वो ढाबा और क्रेशर संचालक के पास से वारंटी मिला, इसलिए उसे शहरी नेटवर्क बताया गया है, शेष यदि कोई आरोप लगाए जा रहे हैं तो मुझे उस बारे में कुछ नहीं कहना है”
रंजन यादव झारखंड के नामकुन राँची का निवासी है, और ढाबा और क्रेशर संचालक रविंद्र शर्मा भी उसी गाँव का निवासी है। लेकिन बावजूद इसके वर्ष 2008-9 से बरियों इलाक़े में मौजुद रविंद्र शर्मा को लेकर पुलिस रिकॉर्ड में कोई संदिग्ध गतिविधियों का हवाला नहीं है। रविंद्र शर्मा के क्रेशर को लेकर जरुर गाँव में स्वामित्व और आधिपत्य को लेकर विवाद था।
बहरहाल पुलिस की कार्यवाही और दावों पर लगातार सवाल खड़े हो गए हैं।आईजी समेत वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे शिकायती पत्र में मामले की जाँच से जुड़े पुलिसकर्मियों के कॉल रिकॉर्ड की जाँच करने की माँग भी लिखी गई है।
इस पूरे मामले में बार बार यह चर्चाएँ आरोप की तरह ज़ोरों पर हैं कि, किसी व्यक्ति विशेष के ईशारे जिसके संबंध कथित तौर पर उच्च स्तरीय हैं, उसकी ही भुमिका इस पूरे प्रकरण को गढ़ने और प्रचारित करने में अहम है। सूत्र जो कि अपना नाम सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं उनकी ओर से बताया गया है कि मसला क्रेशर पर क़ब्ज़े के साथ पुलिस और आला अधिकारियों के बीच कथित तौर पर विश्वसनीयता हासिल करने और ढाबा सह क्रेशर संचालक पर दबाव बनाकर व्यक्ति विशेष इस प्रकरण के बहाने अपने नीजि विरोधियों को उलझाने की कवायद में था। इस व्यक्ति को लेकर दावा यह भी है कि इसके साथ कतिपय मीडिया कर्मी शामिल हैं जो इसके बताए अनुसार विषय को गढ़ते बुनते और प्रसारित करते हैं।चर्चाएं सार्वजनिक है कि यह व्यक्ति खुद को सत्ता के केंद्र के सबसे करीबी प्रचारित करता है, और इसके सबसे बड़े पैरोकार बिलासपुर में मौजूद बताए जाते हैं, जो इसके उन प्रकरणों जिनमें कि यह लंबे अरसे तक जेल में रहा उनमें विवेचना को प्रभावित करने लगातार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से दिशा निर्देश देते हैं, हालाँकि इसकी पुष्टि नहीं होती।
बहरहाल सच जो भी हो, उसकी जाँच होगी कैसे ? क्योंकि जिस एजेंसी पर जाँच की जवाबदेही है, वह पुलिस तो खुद आरोपों के घेरे में है।शायद न्यायालय में वकीलों की जिरह बहस के दौरान सच सामने आए। यह बस एक संयोग है कि पुलिस पर जिस बरियों कांड को लेकर सवालों के घेरे में है उसके आरोपी जेल दाखिल हुए और संसदीय सचिव चिंतामणि महाराज उसी रामानुजगंज जेल के निरीक्षण पर अचानक पहुँचे जिस रामानुजगंज जेल में उपरोक्त आरोपी निरुद्ध किए गए हैं।