आज हम इस विपरीत परिस्थितियों मे जहां एक आदमी असहाय है उस समय मैं हू ना बोलने का जिनको हक है वो कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे है । शायद हम सही मे लोकतंत्र में जी रहे है । यह लोग तो विशेष अतिथि बनने के लिए माला पहनने के लिए ही बने है । आज लोग अपने परिजनों के लिए दर दर ठोकरे खा रहे है किस हालात मे है यह उनका परिवार ही जानता है । निश्चित आज संसाधन की काफी कमी हो गई है पैसे वाले तो अपना रास्ता बना लेते है । पर एक मध्यम वर्गीय परिवार निम्न वर्गीय परिवार आज के परिस्थितियों में कैसे जद्दोजहद कर रहे है वही जाने । पर मैंने न आजतक किसी सोशल मीडिया में या समाचार पत्रों मे वो सुर्खियां देखने के लिए तरस गया कि कोई नेता अपने जनता के लिए सिस्टम से लडते दिखाईं दे रहा है । शायद सब लाॅकडाउन मे अनिश्चित काल के लिए कवारांइटेन ही हो गये है । अरे तुम्हारा कैसे किसी अस्पताल में दाखिला नहीं होता मै देखता हू । मेरे रहते कोई पैसे की चिंता न करे ठीक हो जाओ फिर देखा जाएगा। शासन से लडते नहीं दिखाई दिये कि मेरे यहां इसकी कमी है तुरंत वयवस्था कराई जाए। आज के माहौल मे तो सिर्फ उस पार्टी वाले वही राजनीति करते दिखाई दे रहे है जो उन के राजनीति को शूट कर रहा है। पर स्थानीय राजनीति को तो करीब करीब लकवा सा मार गया है । कहीं भी जनप्रतिनिधि नहीं वहीं उनके सामने वाला हारा हुआ नेता भी कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है । कोई तो काम करता कोई नहीं । वहीं कहीं पूर्व माननीय भी नहीं दिखाई दे रहे है । जिस तरह से खबरें आ रही हैं कि दवाईया नहीं मिल रहे है विशेषकर रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शन खुलकर कालाबाजारी हो रही हैं ऐसे मे कोई भी नेता अपने जनता के लिए इसके लिए लडते नहीं देखा। लोग अभी ऐसे माहौल मे रहे है जैसे वो राजनीतिक शून्य के माहौल मे रह रहे है । न भैया न चाचा न दीदी सब भूमिगत हो गए। हाल यह है कि किसी के मृत्यु पर दो शब्द श्रद्धांजलि के भी कहने की स्थिति मे नही रह गए है । आज इनके पास श्रद्धांजलि अर्पित करने का भी साहस नहीं रह गया है । लोग अब काम का लेखा जोखा पूछना न चालू कर दे । कहीं लोगों का रोष फूट न पड जाए । वहीं मुझे तो उन पर भी दया आती है जो राजनीतिक गलियारों मे घूमकर अपने को कुछ मानने लगे थे । कुछ नहीं समय आपको अपनों की पहचान कराता है । माने हुए भैया दीदी चाचा आपके किसी काम के नहीं है। आपके लिए तो आपके लिए ही दौडेंगे । जब तक आप धर्म समाज जातियों की राजनीति में उलझे रहोगे तो और पैसे वालों को नेता बनाओगे तो समय मे कोई भी काम नहीं आएगा। पर राजनीति और जमीनी सच यह है कि किसी को भी किसी भैया दीदी चाचा की हेल्प नसीब नहीं हुई । कम से कम इन हालातों में इन्हे देवदूत बनकर आना चाहिए था । बस इतना ही
डा .चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ