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आज है महावीर जयंती, जानें शुभ मुहूर्त एवं उनके पांच महत्वपूर्ण सिद्धांत

अहिंसा, त्याग और तपस्या का संदेश देने वाले भगवान महावीर का जन्म हिन्दू पंचाग के अनुसार चैत्र मास के 13वें दिन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को 599 ईसवीं पूर्व बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के घर हुआ था, जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर जयंती का विशेष महत्व है

जैन समुदाय के 24 वें और अंतिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर जिन्हें हम भगवान की संज्ञा देते हैं भगवान महावीर जैन धर्म के प्रमुख होने के साथ-साथ हिन्दू धर्म के भी प्रमुख हैं। भगवान महावीर की जंयती को पूरा देश बड़े धूम-धाम के साथ मनाता है। अहिंसा, त्याग और तपस्या का संदेश देने वाले भगवान महावीर का जन्म हिन्दू पंचाग के अनुसार चैत्र मास के 13वें दिन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को 599 ईसवीं पूर्व बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के घर हुआ था। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर जयंती का विशेष महत्व है आईए जानते हैं कब मनाई जाएगी महावीर जयंती

जयंती तिथि – रविवार, 25 अप्रैल 2021

त्रयोदशी तिथि आरंभ – 19:16 (24 अप्रैल 2021)

त्रयोदशी तिथि समाप्त – 16:12 (25 अप्रैल 2021)

भगवान महावीर जी के बचपन का नाम वर्धमान था। उनके जन्म के बाद राज्य दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था। जिसके चलते इनका नाम वर्धमान रखा गया। महावीर जयंती का पर्व जैन अनुयायियों द्वारा पूरी दुनिया में मनाया जाता है। अहिंसा परमो धर्म: अर्थात अहिंसा सभी धर्मों से सर्वोपरि है। यह संदेश भगवान महावीर ने पूरी दुनिया को दिया और संसार का मार्गदर्शन किया ‘जियो और जीने दो’ का मूल मंत्र इन्हीं की देन है।

जानिए वर्धमान महावीर से जुड़ी मान्यताएं – जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वर्धमान ने 12 वर्षों की कठोर तप कर अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया। जिससे उन्हें जिन कहा गया, विजेता कहा गया। उनका यह तप किसी पराक्रम से कम नहीं था। इसी के चलते उन्हें महावीर नाम से संबोधित किया गया और उनके दिखाए मार्ग पर चलने वाले जैन कहलाते हैं। जैन का तात्पर्य ही है जिन के अनुयायी। जैन धर्म का अर्थ है जिन द्वारा परिवर्तित धर्म। दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर ने कठिन दिगम्बर चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। हालाँकि श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार महावीर दीक्षा उपरान्त कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति दिगम्बर अवस्था में की। ऐसा माना जाता है कि भगवान महावीर अपने पूरे साधना काल के दौरान मौन रहे।

भगवान महावीर जी के पांच सिद्धांत –

मोक्ष पाने के बाद, भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत दर्शाएं जो समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति की ओर ले जाते हैं। जिनमें शामिल हैं – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अंतिम पांचवा सिद्धांत अपरिग्रह।

प्रथम सिद्धांत – अहिंसा इस सिद्धांत के अनुसार जैनों को किसी भी परिस्थिति में हिंसा से दूर रहना चाहिए। भूल कर या अनजाने में भी किसी को कष्ट नहीं पहुँचाना है।

दूसरा सिद्धांत – सत्य भगवान महावीर कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य के सानिध्य में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।लोगों को हमेशा सत्य बोलना चाहिए।

तीसरा सिद्धांत – अस्तेय अस्तेय का पालन करने वाले किसी भी रूप में अपने मन के मुताबिक वस्तु ग्रहण नहीं करते हैं ये लोग संयम से रहते हैं और केवल वही लेते हैं जो उन्हें दिया जाता है।

चौथा सिद्धांत – ब्रह्मचर्य इस सिद्धांत के लिए जैनों को पवित्रता के गुणों का प्रदर्शन करने की आवश्यकता होती है, जिसके कारण वे कामुक गतिविधियों में भाग नहीं लेते।

पांचवा सिद्धांत – अपरिग्रह यह शिक्षा सभी पिछले सिद्धांतों को जोड़ती है। अपरिग्रह का पालन करके, जैनों की चेतना जागती है और वे सांसारिक एवं भोग की वस्तुओं का त्याग कर देते हैं।

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