छत्तीसगढ़ – किसानों ने मनाया कठोरी पूजा, जाने कैसे मनाईं जाती है यह पारम्परिक प्राचीन पर्व – cgtop36.com

मुन्ना पांडेय लखनपुर- सरगुजा भौगोलिक दृष्टि कोण से जंगल पर्वत पठारो का क्षेत्र रहा है यहां के लोगों का रहन सहन भेष भूषा भले ही भिन्न-भिन्न रहें हों परन्तु आपसी प्रेम भाईचारे को बरकरार रखते हुए अनेक त्योहार मिल जुल कर मनाते हैं इसी तारतम्य में इन दिनों कठोरी पूजा मनाने का दौर चल रहा है। गांवों में वैशाख महिने के कृष्ण पक्ष में कठोरी पूजा मनाया जाता है।
सदियों पुरानी चली आ रही परंपरा को कायम रखते हुए नगर लखनपुर- के झिनपुरीपारा में स्थित गौरा महादेव कलेसरी देव स्थल में कठोरी पूजा कृषक वर्ग के लोगों ने बीते दिन उत्साह के साथ कठोरी पूजा मनाया। दरअसल कठोरी पूजा में गौरा महादेव, कलेसरी, देवराज इन्द्र, वरूण पृथ्वी देवी अन्नपूर्णा धन धान्य की वृद्धि करने वाले रासबढावन देव ग्राम देवता डीह डीहारीन तथा रोग दुःख जहरीले जीव जंतुओं से निजात दिलाने वाले देवी देवताओं की पूजा अर्चना ग्राम बैगा द्वारा किया जाता है यह चलन आदि काल से रहीं हैं।
कठोरी पूजा अर्थात कठोर भूमि की पूजा जहां कभी हल न चलाया गया हो। जिसे पूजनीय स्थल माना जाता है। देवों के देव महादेव जो कालों को भी अपने बस में रखते है उनका पूजा अनुष्ठान किया जाता है। जहां कृषक वर्ग के लोग एकत्रित होकर यह पर्व प्रत्येक वर्ष मनाते हैं। दरअसल ऐसी मान्यता है कि कठोरी पूजा के बाद मां अन्नपूर्णा अपने धरती मां के गोद में जाती है तथा एक नियत तिथि को अपने भक्तों के लिए धन्य सुख समृद्धि लेकर वापस लौटती है। कठोरी पूजा मनाने की प्रथा प्राचीन से चली आ रही है । कठोरी पूजा के एक रोज पहले ग्राम कोटवार से मुनादी करा दिया जाता है कि फलां दिन को कठोरी पूजा मनाई जाएगी।
रिवाज रही है कि इस दिन पूजा मुक्कमल होने तक देवी देवताओं के सम्मान में रासढोढी से पानी भरने जमीन खोदाई करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाता है। आपसी रायशुमारी के बाद ग्राम बैगा द्वारा निर्धारित दिन को ही कठोरी पूजा मनाया जाता है। जनश्रुतियों से पता चलता है कि रियासत काल में कठोरी पूजा के रोज पूजा होने से पहले रास ढोढी से पानी भरने तथा जमीन खोदाई करने की मनाही रहती थी उस काल के जमींदारों के द्वारा कठोर नियम बनाए गए थे।
नाफरमानी करने वाले दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को अर्थ दंड से दंडित किया जाता था लोग कठोरी पूजा होने तक जलस्त्रोतों से पानी नहीं भरते थे दूसरा पहलू यह भी था कि लोगों की इन्द्र व वरूण देव के प्रति सच्ची श्रद्धा थी ओ किसी भी प्रकार से रूष्ट न हो जमीन पर कोई सूखा अकाल न पड़े उन्हें खुश रखने हर संभव प्रयास किया जाता था। धरती मां का आशीर्वाद प्राप्त हो लहलहाते खेत हो धन धान्य की वृद्धि हो हर तरफ खुशियाली ही खुशियाली हो इन्हीं मंगल कामनाओं को लेकर कठोरी पर्व मनाये जाने का चलन आरंभ हुआ होगा।
उसकाल में हेडपंप वोरवेल नल जैसे संसाधन नहीं थे। सरगुजा के लोग पेड़ों के झुरमुट रास्ते के पत्थर पहाड़ नदी ढोढी कुआं नदी तालाब सरोवर को देव स्वरूप मानते थे और आज भी मानने का रिवाज है परन्तु पुराने से लोग अपनी प्यास बुझाते थे। कठोरी पूजा के रोज जलस्त्रोतों से पानी भरना बंद रहता था पहरे लगा दिये जाते थे। इसलिए लोग एक दिन पहले ढोढी कुआं पोखर से पीने का पानी भर लिया करते थे। सख्त नियम बनाए गए थे। मौजूदा वक्त में परंपरा आज भी बरकरार है परन्तु उतना कठोर नहीं है जितना पुराने समय में हुआ करता था।
पुराने नियम के अनुसार ग्राम बैगा पहले पहल राजमहल से रासबढावन देव का पौती यानि पिटारी धान (कठोती) को गौरा महादेव कलेसरी देव स्थल पर लेकर पहुंचता है। कृषक वर्ग के लोग अपने अपने घरों से धान को डिब्बों में भरकर गोबर से ढककर पूजा सामग्री लेकर प्रथानुसार देवस्थान पहुंचते हैं एवं ग्राम बैगा से पूजा कराते हैं।
सब किसानों द्वारा लाये गये धान को एक बांस के बर्तन मोरली में इकट्ठा कर कठोर भूमि पर बोया जाता है। तथा एक व्यक्ति द्वारा पानी छिड़काव किया जाता है। पूजा कराने पहुंचे सब किसान हल (नागर) लोहे को हाथ से पकड़ कर कठोर भूमि को परिक्रमा करते हुए जोतते है। एव सभी देवी देवताओं की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। इस मौके पर बायर नृत्य करने की भी परिपाटी रही है।
कालांतर में कहीं कहीं आदिवासी अंचलों में बायर नृत्य करने का चलन अब भी जिंदा है। शाम को ग्राम बैगा एवं उनके सहयोगियों द्वारा रासपानी का वितरण बस्ती के सभी घरों में किया जाता है।बदले में किसान तबके के लोग बैगा एवं उनके सहयोगियों को चावल पैसा दान स्वरूप देते है बैगा द्वारा दिए रास पानी को घर में चारों तरफ छिड़काव किया जाता है। इस तरह से कठोरी पूजा मनाया जाता है।
बैगा द्वारा पूजा किए गए धान को ही अक्षय तृतीया एकादशी गंगा दशहरा जैसे शुभ मुहूर्त में किसान अपने खेत में सर्वप्रथम बोकर कृषि कार्य का शुभारंभ करता है। आस्था से जुड़ी कठोरी पूजा क्षेत्र के गांवों में अलग अलग दिनों में मनाया जाता है।
कठोरी पूजा मनाने का सिलसिला क्षेत्र में शुरू हो चुका है।