जनहित कही मायने नही रखता मायने रखता है अपनी राजनीति |

आज डा.वाघ की वाल मे राजनीति पर ही बाते करेंगे । दल व नेताओ को मुद्दे उनकी राजनीति देखकर ही तय करने पडते है । हालात यह है की एक ही मुद्दो पर जगह व अपने राजनीतिक हालात को देखकर उस पर रूख तय करना पडता है । यह विरोधाभास इसलिए होता है की अपना हित वहा किससे है पहले यह देखने की आवश्यकता रहती है । कुल मिलाकर जनहित कही मायने नही रखता मायने रखता है अपनी राजनीति । अभी पिछले दिनो ही संविदा कर्मचारियो के नियमित पर इन दलो का रूख अपने सत्ता व विपक्ष के पैमाने को रखकर ही निर्धारित किया है । जहा यह सत्ता मे है वहां नियमित रखने पर करने पर वह आशावादी रूख नही है । यहां तक चल रही हडताल पर भी कोई संवेदनशीलता नही है । वही जहां विपक्ष मे है वहां तो हडताल को लेकर पूरी सहानुभूति है । विपक्ष के नाते कर्मचारियो के हित अहित की इतनी चिंता है की कर्मचारी भी कई बार सोचता है काश यह लोग सत्ता मे रहते तो हमारी पूरी मांग इन लोग पूरा कर देते पर ऐसा भी नही है । जो विपक्ष वहां बैठकर घड़ियाली आंसू बहा रहा है उसे तो इससे दूर दूर तक लेना देना नही है । कमोबेश यह स्थिति सभी दल व नेताओ की है । सत्ता मे रहने पर सत्ता का धर्म निभाना मजबूरी है वही विपक्ष मे रहकर सुनहरे सपने को पूरा करने की जी जान की कोशिश जनता को दिखाकर विश्वास मे लेना यह राजनीतिक मजबूरी है । कुल मिलाकर सिद्धांत दल और नेता कोई भी हो पर चाल एक समान रहती है बस ब्रांड का अंतर रहता है । इन पर विश्वास शायद ही कोई करता हो यही कारण है की आज के समय पब्लिक भी सबको हां कहती है जो प्यार से देता है तब तक उसकी हो जाती है फिर दूसरे कर्ण का रास्ता देखते है और मतदान के दिन शाम पांच बजे के अंतिम क्षणो मे जो याद रहता है उसे वोट कर आ जाती है । यही कारण है की जब खरीद कर आते है तो खरीदने वाला मिलता है तो यह भी उपलब्ध हो जाते है । राजनीति बाजार है यहा सब जायज है पर सिद्धांत एक है आचरण एक है जो भूमिका मिलती है बस वही रोल अदा करना समय की आवश्यकता है । जो बडी सफलतापूर्वक अपना किरदार निभाने का काम करते है । चाहे सुख हो या दुख या दोनो हो किरदार मे दिख जाते है । जैसे सत्ता मे हो या विपक्ष मे बस यही अदा लोगो को विश्वास करने को मजबूर करती है । यही कारण है की एक ही मुद्दे पर अलग अलग स्टैंड लोग देखते है ।
बस इतना ही
डा. चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ