इस संभाग के क्वारंटाइन सेंटर में विषैले करैत का जबरदस्त खतरा, अंधेरा होते ही मंडराती है मौत
सरगुजा संभाग में विषैले करैत सांप बिल से बाहर निकल आते हैं। अंधेरा इस सांप की पसंदीदा जगहों में है, इस कारण बगैर किसी शोर व आवाज के यह घर में प्रवेश करता है और जमीन में सोए लोगों को एहसास भी नहीं होता और यह डस कर चला जाता है।
सरगुजा बलरामपुर और सूरजपुर इन तीनों जिलों में हर साल मानसून के पहले और मानसून के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की जान करैत के काटने से चली जाती है। इस बार कोरोना वायरस संक्रमण से शहर से लेकर गांव तक लोग जूझ रहे हैं। बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को गांव-गांव में बने क्वारंटाइन सेंटरों में रखा गया है। अधिकांश सेंटरों में प्रवासी श्रमिकों के लिए जमीन में ही सोने की व्यवस्था की गई है।
ऐसी स्थिति में नवतपे के बीच हुई बारिश से बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। प्रशासन अभी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा और न ही गंभीरता बरत रहा है।प्रदेश की भूपेश ने सरकार ने हर जिले में सभी ग्राम पंचायतों में क्वारंटाइन सेंटर बनाने के निर्देश दिए हैं। प्रशासन ने पंचायतों में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों, पंचायत भवन, छात्रावास, आश्रमों के साथ खाली पड़े शासकीय भवनों को क्वारंटाइन सेंटर बनवा दिया।
छात्रावास व आश्रमों में तो बेड की व्यवस्था है, लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों व अन्य भवनों में बने क्वारंटाइन सेंटरों में चटाई बिछाकर टेंट हाउस से बिस्तर की व्यवस्था कर दी गई है और प्रवासी श्रमिक जमीन पर सोने मजबूर हैं। श्रमिकों के आने का सिलसिला अभी निरंतर जारी है।
कहा जा रहा है कि मानसून आने तक लोग जमीन पर ही सोएंगे। ऐसी स्थिति में गुरुवार को नौतपा के दौरान हुई मूसलाधार बारिश के बाद बढ़ी उमस से विषधर बाहर निकलने लगे हैं। तीनों जिलों में सबसे खतरनाक करैत सांप होता है, जो हर साल लोगों को डंसता है। इनमें जमीन पर सोने वाले लोगों की संख्या अधिक होती है। सरगुजा में 131, सूरजपुर में 185, बलरामपुर में 161 क्वारंटाइन सेंटर हैं।
इस संबंध में जिला कलेक्टर ने मीडिया को बताया कि क्वारंटाइन सेंटरों में बेहतर से बेहतर व्यवस्था करने की कोशिश है। जहां-जहां सेंटर बनाए गए हैं, वहां बिजली बाधा न हो, इस पर भी नजर रहेगी। प्रवासी श्रमिकों को थोड़ा सावधान रहना पड़ेगा। मानसून से पूर्व अधिकांश श्रमिकों की क्वारंटाइन अवधि पूरी भी हो सकती है।




