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आलेख – जेल कौन जाना चाहता है भाई, जेल मैनुअल डालना बड़ी टेढ़ी खीर

आज मै आपको उस समय के संस्मरण पर ले जाना चाहता हू जिससे हर सामान्य आदमी या तो सिर्फ सुनता है या कहीं पढता है पर उसके बारे मे जानने की उत्सुकता बनी रहती है । जेल वह जगह है जहां कोई जाना नहीं चाहता है । आजादी के परवानों ने यही रहकर तकलीफे सहकर हमे आजाद करवाया ।  चलो विषय पर आया जाए यह बात है सन 1977- 1978 की आपातकाल के बाद पूरे देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी । तत्कालीन मध्यप्रदेश में भी छत्तीसगढ़ भी उसका हिस्सा था यहां भी जनता पार्टी की सरकार बनी थी।  उस समय बहुत समय से लंबित आयुर्वेद छात्रों ने अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन दिया था ।  विशेषकर असमानता की मांग को लेकर भारी रोष था ।  एक आव्हान जेल भरने का भी था ।  फिर वह दिन आ ही गया हम लोग पचास साठ के जत्थे मे भोपाल तब मध्यप्रदेश की राजधानी हुआ करती थी उसके लिए निकले । पहले ही तय था कि पैसे कम है तो बेटिकट ही जाऐंगे।  जैसे ही हम लोग सफर के लिए निकले तो टी टी महोदय को तो पहले ही शंका हो गई थी कि यह सब लोग विदाउट टिकट है । मांगने पर जब कारण बताया तो बंदा राजी नहीं हुआ।  अंततः बंदे ने नागपुर मे रेल्वे पुलिस के हवाले कर दिया । जब निकले ही थे तो हम सभी लडको का डर ही निकल गया था । जब हमारे चाय और नाश्ते खा समय हुआ तो थाना प्रभारी से हम लोगों ने नाश्ता चाय मांगा तो पहले तो अपने पैसो से पीकर आ जाओ कहा फिर हम लोगों ने जब बात बताई और पैसे नहीं होने का हवाला दिया तो उसमे से एक लडके ने प्रभारी की जिम्मेदारी की बात की फिर उसने इंतजाम किया फिर रात हुई डिनर का समय फिर हम लोगों का इंतज़ाम खाना खिलाने के बाद अपने अधीनस्थ कर्मचारी को कहा जो भी ट्रेन दिल्ली की तरफ आ रही हैं उसमे इन लडकों बैठा दो शायद तंग आ चुका था। अंततः अपने मंजिल पहुंच गये । फिर हम लोगों ने विधायकों के आवास परिसर मे जो बडे बडे बरामदे थे यह हम लोगों के अस्थाई निवास बन गये ।वहीं विधायकों के मेस मे ही कम दरों का शासकीय खाना लेते थे । वहां रहने से यह फायदा था कि रहने के खर्च से बच गये और अपनी मांगों के लिए विधायकों से मिलने मे सहूलियत भी थी । हम रायपुर वाले तब के विधायक श्री मती रजनी ताई उपासने और श्री रमेश वरलयानी से मिले थे तब वो जनता पार्टी मे थे । पूरे प्रदेश के लडके आए हुए थे रोज सौ डेढ सौ आंदोलन कर गिरफ्तारी की योजना थी ।  अंदर से खबरें आ रही थी कि जल्दी आओ यहां बहुत अच्छा खाना मिल रहा है । बाहर हर छात्र को पैसे की तंगी के कारण वो भी मानसिक रूप से अंदर जाने के लिए बेताब थे । आखिर वह दिन भी आ गया जब हम लोगों की गिरफ्तारी हुई।  कभी भी जेल की चौखट नहीं देखे थे पर वहा का माहौल कुछ अलग कहानी कहता था । बडे गेट से बुलंद दरवाजो से अंदर आने के बाद निकलते तक तो अब इन्ही के मेहमान है ।   हम लोगों की गिरफ्तारी किसी आंदोलन से होने के कारण हम लोगों को बडे बैरकों मे रखा गया था । जहां थोड़ी चहल कदमों की भी गुंजाइश थी । शायद हम लोग बैरक मे पचास साठ लोग रहे होंगें।  जाते साथ ही नीचे बिछाने के लिए दरी ओढने के लिए जेल का बहुचर्चित कंबल और खाने के लिए वह सफेद वाली बहुचर्चित प्लेट व बर्तन  ।  पर जैसे खबरें बाहर हम लोगों के पास पहुंचाई जा रही थी उसमे सच्चाई एक रत्ती भर नहीं थी । पहुंचने के बाद उन पहले वालो की खुशी का अंदाजा नहीं था उनको लग रहा था कि यहां की तकलीफ अकेले क्यो झेले । दरी बिछा दी गई काफी लडके थे तो समय काटने की उतनी चिंता व मुश्किल नहीं थी ।  पर उन आदतों को जो जेल मैनुअल मे रहते है उसमें अपने को डालना बहुत मुश्किल काम है। अगर आप सबेरे जल्दी उठ गये तो आपके नित्य काम जल्दी और अच्छे से हो जाते है । बाद की भीड और वहां की वयवस्था आपको परेशान कर देती है ।  कुछ टायलेट फिर लंबी लाइन  मे वो समय काटना मुश्किल हो जाता है । चाय बिल्कुल अहसास कराती थी कि तुम अब कहा हो ।  चाय पीने की इच्छा हर समय रहतीं थी पर यह चाय ऐसे लगता था कि हम जबरदस्ती ही अपने गले मे उतार रहे है । गर्मी के दिनों मे हम लोग जेल मे थे तो वह गर्मी विचलित कर देती थी । इतने बडे हाल मे दो तीन पंखे नाकाफी थे । शायद पंखे की गति देखकर यह लगता था कि पंखे को मन रखने के लिए रखा गया है।  हंसी मजाक इतने लोगों के बीच समय निकालने का माध्यम था ।  खाने के लिए वो प्लेट जो तामचीनी के बने रहते है उसे दिया जाता है।  बडे बर्तन मे खाना आता था वो लंबी लाइन फिर  दो लाइनों मे लगकर लेना रहता था । जेल की वो स्वादिष्ट रोटी जिसे दोनों हाथो से तोडना पड़ता था कई बार तो कोशिश करनेके बाद भी तुटती थी । फिर वो दाल खासकर उडद व चने दाल की दाल जो सागर में मोती ढूंढने से कम नहीं रहता था ।  सब्जी मे कद्दू लौकी और बैगन का ज्यादा उपयोग होता था ।  पर साथ मे थे तो जब एक लाइन इतनी लंबी रहती थी कि भूख के चलते कुछ लोग सूखी रोटी खा लेते थे ।  दिन पता नहीं चलता था पर रात तो कयामत की रात रहती थी इसलिए देर रात सोते थे ।  रात मे मच्छर के काटने से अगर जेल का कंबल उससे बचने के लिए ओढो तो जहां कंबल गडता था वहीं गर्मी से बुरा हाल हो जाता था।  यह परेशानी आम कैदियों की रहती है । मुखतार अंसारी भी उत्तर प्रदेश आकर इसका शिकार हुआ।  हम लोगों को सी क्लास की ट्रीटमेंट दी जा रही थी तो एक दिन सभी लडको ने आमरण अनशन किया थोड़ा जेल प्रशासन भी चिंतित हुआ उस समय जेल मंत्री स्व. पवन दीवान जी थे । उनके पास बात पहुंच उन्होंने रायपुर मे रहे तत्कालीन जिलाधीश श्री रविन्द्र मिश्रा जी जो शायद सचिव थे उन्हे हम से मिलने भेजा । उसी समय रविशंकर विश्व विद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष व तत्कालीन जनता पार्टी के नेता स्व. प्रकाश शुक्ला भी हम लोगों से मिलने जेल पहुचे ।  फिर हमे जेल मे बी श्रेणी मे रखा गया  । वहां फिर  ब्रेड दूध अंडे दिये जाने लगे । मै तो सात दिन ही रहा पर हमारे दूसरे साथी दो माह तक रहे । बहुत अच्छा अनुभव कैदी अपना कैद कैसे काटते है यह अनुभव हुआ  ।  पर इतने लोग थे इसलिए पता नहीं चला । पर वैसी कैद बहुत मुश्किल है ।  यह ऐसा अनुभव है जो मिला यह अपने आप मे बहुत बडी बात है।    जब जेल के बुलंद दरवाजो से बाहर आने के बाद जो खुले पन का अहसास होता है उसका अलग ही आनंद है।  लोगों को तो सिर्फ पिक्चर मे ही देखने को मिलता है पर अनुभव का अहसास मैने जिया है  ।  पर यह बात थी कि हम लोगों से कोई काम नहीं लिया जाता था । पर अन्य कैदी हमे सिर्फ अंदर होते समय और बाहर होते समय ही  दिखे  आज शायद तिरालिस साल पुरानी घटना फुर्सत मे लिख लिया  ।   जेल के संस्मरण के बाद चुनाव के संस्मरण पर भी लिखूंगा  । छात्र जीवन मे यह पल का भी आनंद लिया है । बस आप सुरक्षित रहे  ।  बस इतना ही 
डा.  चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

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