विदेश यात्रा संस्मरण – यही कारण है कि स्विट्जरलैंड को जन्नत कहा जाता है

विदेश यात्रा का संस्मरण बारह हम लोग सबेरे ही जल्दी उठ गए क्योकि हम इस यात्रा के समय का पूरे का पूरा फायदा उठाना चाहते थे। फिर क्या था अपनी पहली चाय वह भी इंस्टैंट चाय से दिल चर्या चालू हुई। जैसे ही मैंने अपने बेडरूम की खिड़की खोली ऐसा लगा कि जन्नत ही दरवाजे चल कर आई है । शायद यही कारण है कि स्विट्जरलैंड को जन्नत इसी लिए कहा जाता है । पीछे का पूरा दृश्य ने हतप्रभ कर दिया दूर दूर तक पीले फूलों से दूर तक आच्छादित था । मैंने तुरंत बाकी लोगों को बुलाया देखकर सब लोग आश्चर्य चकित थे । फिर क्या था कैमरे से दृश्य को कैद कर लिया गया । मोबाइल पर भी कैमरा चालू हो गया । पूरे पीले फूलों से दूर दूर तक आच्छादित था । वहीं बीच मे एक पगडंडी दिख रही थी । जब दूसरे खिडकी को खोला गया तो फिर अलग-अलग फूलों का नजारा था । मैने जब अपने दोस्तों को जब वाटसअप के माध्यम से भेजा तो लाफारज सीमेंट मे रहे पूर्व चीफ कैमिस्ट पद पर राजेश शर्मा को भेजा तो यह दृश्य अभनपुर का नहीं हो सकता। फिर दूसरें मित्र आयुष के संचालक पद से सेवानिवृत्त हुए डा जी एस बदेशा को भेजा तो छूटते ही उसने कहां अबे कहा घूम रहा है। बताया तो आश्चर्य चकित हो गए अबे कैसे चले गया । लगने लगा वहा का जर्रा जर्रा हमे यह संदेश देने की कोशिश कर रहा था कि मै स्विट्जरलैंड हू जबकि हम अभी अपने फ्लेट से भी बाहर नहीं निकले थे ।

ऐसा लग रहा था कि बस इनको ही देखते रह जाए । इतनी ज्यादा हरियाली पहले और शायद आखिर बार देख रहे हो । पर ऐसा लगने लगा था कि यहां रूकने का चुनाव बिलकुल सही फैसला था । पिछले पोस्ट मे ही बाहर का दृश्य वेलिसेलन का मैंने दिखाया था । फिर बाहर निकलने के पहले पहला दिन था कहा क्या मिलेगा इसका अंदाजा नहीं था इसलिए नाश्ता अच्छा से ही कर लिया था । सब लोग तैयार थे फ्लैट के चारो दिशाओं मे अलग-अलग बडे पेड फिर रासतों मे फूलों की बारिश वहीं कार भी हल्की सी ओस के चलते गीली तथा फूलों से आच्छादित थी । कोई भी देखेगा या यह भी कह ले कि जो प्रकृति प्रेमी न भी होगा वह भी अपने को आखिरकार बदलने को मजबूर हो जाएगा । ऐसा लग रहा था हम स्वरग मे अपने को पा रहे है । अभी बस इतना ही । क्रमशः डा .चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ




