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आलेख – कोई भी ऐसा नेता नहीं है जिसकी राष्ट्रीय स्वीकार्यता हो पर खयाली पुलाव बनाने मे क्या जाता है

चलो एक बार प्रधानमंत्री बनकर ही देख लो  । जो आता है लचर लोकतंत्र का फायदा उठाते हुए मुंह उपर कर प्रधानमंत्री मोदी जी के लिए कुछ भी कह कर चले जाते है ।  अगर इस देश मे लोकतंत्र के लिए इतनी ही प्रतिबद्धता रहती तो प्रधानमंत्री जी के लिए कुछ भी बोलने के पहले विचार करते । जब से मोदी जी प्रधानमंत्री क्या बन गये पूरा लोकतंत्र ही खतरे मे आ गया । इवीएम पर भी प्रश्नचिन्ह खडा करते है और जीतने के बाद वहीं इवीएम अच्छा लगने लगता है । कोई तो कहता कि यह इवीएम ठीक नहीं है मेरा चुनाव गलत हुआ है  ।  दुर्भाग्य से अब तक इस पद को राजतंत्र का हिस्सा ही मान लिया गया था । आजादी के बाद से ही यह पद चुने हुए प्रतिनिधि से ज्यादा वयक्ति विशेष के इच्छा पर नामांकन वाला पद बन गया।  नहीं तो जनप्रतिनिधियों की राय ली जाती तो प्रथम प्रधानमंत्री लौह पुरुष बनते । चलो आज के संदर्भ मे ही आया जाये पहले तो इस पद के लिए कोई विपक्ष मे सर्वानुमति ही नहीं है पर सब लोग अकेले ही लटठ भांजे जा रहे है । अभी सबसे ज्यादा मुखर एक राज्य से खुद चुनाव हार कर दल को बहुमत दिलाने वाले अपने को इस पद के दावेदार की बात कर ले ।  जो बंदी अपराधीयो को बचाने के लिए खुले आम धरना कर दे जिसके जीतने पर खुशी के माहौल मे लूटपाट हत्या हो लोगों को अपना घरबार छोड़कर दूसरे राज्यो मे शरण लेनी पडी हो क्या यहां की जनता को यह  उम्मीद वार स्वीकार है । फिर एक खामोश प्रधानमंत्री का प्रत्याशी भले वो चर्चा मे न दिखे पर जब कभी भी यह समय आएगा तो इस रेस में सबसे आगे की दौड़ मे यह प्रत्याशी भी दिखेगा।  अभी हाल में इनके दल के  एक नेता  पूर्व मंत्री के खिलाफ चंदा उगाही का केस चल रहा है  ।  क्या इस देश की जनता एक प्रदेश तक सीमित इस नेता को अपना प्रधानमंत्री देखेगी । फिर प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बडे प्रत्याशी बडे दल के नेता है । जिनके दल मे ही सीनियर नेताओं ने अध्यक्ष पद के लिए चिट्ठी लिखी है । अभी कुछ राज्यो मे इनकी सरकार है ।  अभी हाल के चुनाव मे एक जगह तो सुपडा ही साफ हो गया है।  दूसरे राज्यो मे थोड़ी ही उपलब्धी है जो राष्ट्रीय दल के अनुरूप तो नहीं है । इसके बाद तो कुछ ऐसे भी नेता होंगे जिनके एक भी सांसद नहीं होंगे पर इस पद के लिए अपनी राजनीतिक बिसात शकुनि मामा जैसे चल रहे होंगें  ।  कुल मिलाकर यह है कि पांच सौ पैंतालीस सांसद के लिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के पास खुद के लिए   तीन अंकों की संख्या नहीं है  । फिर एक बंदा है जिसने मुख्यमंत्री बनने के लिए सब फ्री के सिद्धांत पर चला और उसके लिए इस देश का बहुसंख्यक समुदाय सिर्फ प्रताड़ित होने के लिए बने है शोषण के लिए बने है । यह भी इसी एजेंडा के चलते धर्मनिरपेक्षता का झंडा बरदार बनकर उसकी भी  निगाहें  अर्जुन के समान इस पद मे लक्ष्य बनाकर रखा हुआ है  ।  फिर पद के लिए अभी से नाम न जाहिर करने का सबसे बड़ा मुख्य कारण राजनीति के मैदान मे खुलकर तलवार भांजी जाएगी फिर हालात यह हो जाऐंगे कि मोदी जी ही इन्हे अच्छे लगेंगे  ।  कभी इन्हे अपने दिल से भी पूछ लेना चाहिए कि इन्हे जनता का कितना समर्थन मिलेगा  ।  कोई भी ऐसा नेता नहीं है जिसकी राष्ट्रीय स्वीकार्यता हो । पर खयाली पुलाव बनाने मे क्या जाता है  । कौन सा ऐसा नेता है जिसने आरोप लगाने के सिवाय  इस महामारी मे कोई बहुत उल्लेखनीय कार्य किया है।  आज मै इन्हे साफ शब्दों में बता दू कि अगर विपक्ष के पास स्व. इंदिरा गाँधी जी के सामने कोई विकल्प नहीं था कमोबेश यही स्थिति आज है मोदी जी के सामने भी कोई विकल्प नहीं है । यह जान ले की अगला प्रधानमंत्री मोदी जी ही होंगे  ।   बस इतना ही 
डा. चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

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