कर्नाटक चुनाव – हनुमान जी बहुत दुविधा में रहे होंगे की किसे दें अपना आशीष

डा.वाघ की वाल पर मै आज कर्नाटक चुनाव के नतीजे पर विश्लेषण करूंगा । चुनाव परिणाम पर सभी दल अपने अपने विश्लेषण कर रहे है । कोई खुश है तो कोई हार पर नाखुश है । सबने अपने स्तर पर मेहनत की पर नेताओ से ज्यादा वोटर से ज्यादा कोई अगर ज्यादा चिंतित रहा होगा तो वह है बजरंग बली हनुमान जी । हनुमान जी इस समय सबसे ज्यादा दुविधाग्रस्त रहे होंगे की कौन से भक्त को अपना आशीर्वाद प्रदान करे । ठीक उसी तरह जैसे महाभारत के समय श्री कृष्ण जी के पास जिस तरह धनुर्धारी अर्जुन और दुर्योधन एक साथ सहायता मांगने गये । तब श्रीकृष्ण जी ने दोनो को अपना आशीर्वाद व सहयोग दिया जो सबको मालूम है । बस कमोबेश यही स्थिति आज भी हनुमान जी के सामने उपस्थित हो गई भाजपा व कांग्रेस उनके दरबार मे अपने अपने लिए आशीष मांगने पहुंच गए । इस चुनाव मे अगर कोई सबसे बडे संकट मे कोई रहा होगा तो संकट मोचक ही रहे होंगे जिस पर किसी का भी ध्यान नही गया । संकट मोचक के लिए दोनो ही अपने है इसलिए इस चुनाव मे ” कटे संकट मिटे हनुमत बलबीरा ” किसके साथ रहे यह यक्ष प्रश्न खडा हुआ होगा । संकट मोचक ने अपने आशीर्वाद की लिस्ट देखी होगी तो उनका आशीष ज्यादातर भाजपा लोग-बाग के साथ ही रहा है । भाजपा ने तो उनके आराध्य का मंदिर तक बना दिया तो प्रसाद मे भाजपा भी दो बार तो केंद्र मे सरकार बनाने मे सफल हो गई । पवनपुत्र ने उनके यहा पहली बार आए और मजबूरी मे गदा उठाते धर्मनिरपेक्ष लोगो को देखा तो पवन जी भी इससे प्रसन्न हो गए । उन्हे तो यह महसूस हुआ की भाजपा वाले तो उनके ही है यह वही लोग-बाग है जो हर समय उद्घोष करते रहे है ” रामलला हम आऐंगे मंदिर वही बनाएंगे ” । पर जो नये लोग है कल तक राम जी के अस्तित्व के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गए थे और रामजी का जन्म कौन से कमरे मे हुआ था यह तक पूछ रहे थे । अब तो यह लोग राम की माता कौशल्या को भी ढूंढ लिये उसका भी मंदिर बना लिए और तो और यह लोग अब गदा तक उठा कर घूमने लगे यह देख हनुमान जी काफी प्रसन्न हुए होंगे । बात यहां तक भी नही हनुमान जी के अस्सी मंदिर बनाने की बात हनुमान चालीसा के पाठ ने काफी प्रभावित कर दिया । एक समय तो इन दोनो दलो मे कोई अंतर ही महसूस नही हो रहा था । दोनो तीन पत्ती मे जैसे ब्लाइंड खेलते समय खेलने वाला कुछ सोचता नही है यही स्थिति दोनो दलो की हो गई थी । कुल मिलाकर दोनो हनुमान जी को प्रसन्न करने मे लगे हुए थे । अब कोई किसी को सांप्रदायिक नही कह रहा था । चुनाव के समय वह भी प्रचार के समय खुलकर दोनो प्रसन्न करने मे लगे हुए थे । कुल मिलाकर कोई भी धर्म निरपेक्ष नही रह गया था । ऐसे स्थिति मे सब ताक मे रखकर विशेषकर धर्मनिरपेक्षता को खूंटी मे टांगकर कांग्रेस भी भाजपा के समान हनुमान मय हो गई थी । इस चुनाव मे भाजपा से ज्यादा बलिदान कांग्रेस ने दिया ऐसा हनुमान जी को भी लगने लगा । वही बजरंग बली को मालूम है पुराने भक्तो के साथ थोड़ा-बहुत नाइंसाफी होगी तो उसकी आस्था नही डगमगायेगी इसलिए भी बजरंग बली ने इनके लिए थोडी कंजूसी कर दी । पर नये लोग-बाग के लिए विश्वास मे लाने के लिए थोडा मन बडा करना पडता है वही हनुमान जी ने किया । चुनाव भी देखो पहले वाला दल रामलला वाला दल है तो दूसरा भी बजरंगी हो गया है । आखिरकार सनातन ही तो जीता है बाद मे हम भले उसे कांग्रेस भाजपा करते रहे । अब तो हालात यह हो गए है की दोनो एक ही रास्ते से चल पडे है । आज स्थिति यह है की कोई यह नही कह रहा है जैसे पूर्व के चुनाव मे कहते थे की इनके कारण चुनाव जीता है अब तो साफ कह रहे है चुनाव बजरंग बली के कारण जीता है । यह तो सबसे बडा परिवर्तन है । अब तो अप्रत्यक्ष रूप से दो भाजपा काम कर रही है । दोनो दलो मे कहा क्या अंतर है मुद्दे एक निष्ठा एक यहा तक वायदा भी एक बस सिंबल अलग यही अंतर है । कोई कुछ भी कहे कुछ हद तक भाजपा भी जीती है जिसने इस धर्मनिरपेक्ष दल के रथ की दिशा मोड़ने को बाध्य कर दिया । चलो कर्नाटक मे पवनपुत्र के अस्सी मंदिर बनने की बात हो गई है वही चालीसा भी चालू हो गया है । पवनपुत्र जीते है क्योकि एक तो पहले ही उनका था दूसरा तो उनका नही था पर वह भी उनका हो गया । यही राजनीति है समय निकालने के लिए चोला तो बदलना पडता है । जब भाजपा राममय कांग्रेस हनुमान मय फिर हिंदू राष्ट्र के लिए किस बात का सोच विचार । अभी तो देश के दो दल सनातनी हो गए है ।
जहां कुछ लोग जय श्रीराम
वही कुछ लोग जय बजरंग बली
बोल रहे है सनातन विजयी हुई
बस इतना ही
डा. चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ





