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विशेष लेख – देश में बाबर रोड औरंगजेब रोड मिल जाता है पर भगत सिंह रोड चंद्रशेखर आजाद रोड देखने को आंखे तरस जाएंगी

सन 1857  के आजादी की लडाई को गदर बताने वाले अंग्रेज अंदर से इतने डरे हए थे कि देश के अंदर होने वाले क्रांति की चिंगारी को कैसे शांत किया जाए उसमे ही लगे हुए थे । उनकी यह कोशिश रहती थी कि इस तरह के आंदोलन को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल काम था । आज तक यह बात समझ मे नही आई कि इस तथाकथित अंग्रेज को भारतीय स्वतंत्रता से क्या लेना देना था । यह अंग्रेज तो फिर ब्रिटेन के शासन के लिए तो जयचंद साबित होना था । फिर किसी मुलाजिम मे इतनी हिम्मत कैसे रहती कि वह अपने ही सियासत दानों के लिए विद्रोह का बिगुल फूंकता । फिर इस तरह के देश विरोधी नेता ही कहा जाए उस अंग्रेज के खिलाफ तत्कालीन सरकार क्यो खामोश रही जो उनके टुकड़ो मे पलकर ही यहा रह रहा है पूरी सुविधाओं का उपयोग कर रहा है और विभीषण बनकर दीमक की भांति खोखला भी कर रहा है।  क्यो उसके तरफ ध्यान नहीं दिया गया  ?  शायद अब लगने लगा रहा है कि यह उनके रणनीति का ही हिस्सा था जिससे क्रांतिकारी के आग मे पानी डालने का काम कर सके । इसमे दो गुट बनाने मे सफल भी हुए  । यही कारण है कि एक गुट हर समय सरकार के साथ बना रहा पर अपने को स्वाधीनता के आंदोलन का हिस्सा भी बताता रहा।  उन्हे पूरी तरह से जैसे उस अंग्रेज को शासन का सहयोग था वैसे ही इन महानुभावों के लिए हर समय बना रहा । यह तो अंग्रेजों के कार्यप्रणाली में ही साफ दिखाई देना लगा । पर अंग्रेजी मीडिया ने उस समय उन लोगों को ज्यादा ही महिमामंडित कर दिया जो उनके अप्रत्यक्ष सहयोगी बने हुए थे । नहीं तो आजादी की लडाई मे अंग्रेजों का दोहरा मापदंड इन स्वाधीनता सेनानियों से लडने के लिए नहीं होता  । किसी को फाइव स्टार की सुविधा परिवार सहित अपने सहयोगियों सहित यह कैसी जेल ? वहीं कुछ को अपने परिजनों को पत्र लिखने की सुविधा जो बाद मे इतिहास भी बना । वहीं दूसरी तरफ कालापानी की सजा वहीं फांसी।   आश्चर्य होता है कि अगर आजादी मकसद है रास्ते अलग-अलग भी हो सकते है तो भी दूसरे का सहयोग न करना उस अंग्रेज ने जो चाहा वहीं हो रहा था।  अंग्रेजी हुकूमत को इन क्रांतिकारीयो के इरादो से ही डर बना हुआ था  । उनकी यह कोशिश रहती थी कि इस देश के लिए क्रांतिकारीयोका आंदोलन सही नहीं है  । जो आंदोलन उनको सुविधा जनक लग रहा था उस समय उनके आंदोलन को जानबूझकर महिमामंडित किया जाता रहा जिससे इन क्रांतिकारीयो के आंदोलन के खिलाफ एक खराब छबि बनाई जा सके जिसमे वे सफल भी रहे । न पहले इतनी साक्षरता थी न इन आजादी के दीवानों का मीडिया था भी तो अंग्रेजों का जिसे चाहा महान बना दिया।  जिन लोगों ने उन्हे नुकसान नहीं पहुचाया उनके तो वो मुरीद थे । इसलिए उस अंग्रेज को प्लांट किया गया था  । नहीं तो इस आजादी के  महानतम को भी वो कडी से कडी सजा देने से नहीं चूकते।  बंदे ने वहीं किया जो शासन ने चाहा पर आजादी की लडाई मे विभाजन करने मे कामयाब भी हो गया।  यही कारण है कि आज भी इन क्रांतिकारीयो के हिस्से में कुछ नहीं आया । एक बार इस देश में बाबर रोड औरंगजेब रोड मिल जाता है पर भगत सिंह रोड चंद्रशेखर आजाद रोड देखने को आंखे तरस जाएंगी।  अब कही जाकर सुभाषचंद्र बोस जी के आजाद हिन्द फौज के काम को माना गया है।  यही कारण है कि क्रांतिकारीयो को आतंकवादी भी कहा गया । हम अपने ही लोगों के लिए यह बात कह रहे थे । कहते है न ”  कांटा कांटे को निकालता है  ”   बस ऐसा कर इनहोने क्रांतिकारीयो को आजादी के लडाई से बाहर करने की उनकी साजिश कामयाब भी हुई तो कोई आश्चर्य नहीं  । पर यह अंग्रेज हमारा क्यो हितैषी बनकर आया आज भी यह अनुत्तरित प्रश्न बना हुआ है  ।  बस इतना ही  डा . चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ 

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