inh24छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के इतिहास के लिए खास दिन, सियासी घमासान के बीच 54 विधायक दिल्ली में, कौन होगा सीएम टीएस बाबा या भुपेश बघेल, आज हो सकता है राजनीतिक उठापटक

कांग्रेस की सरकार 15 साल का वनवास झेलने के बाद भारी बहुमत से आई थी तो उस समय कांग्रेस में सीएम पद को लेकर काफी उठापटक हुई थी। शुरुआती दौर में देखा जाए तो प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते भूपेश बघेल प्रथम और प्रबल दावेदार थे, लेकिन टी एस सिंह देव जिन्होंने जन घोषणा पत्र के लिए सड़क सड़क से घर-घर घुमा था! यह जिम्मेदारी पार्टी सुप्रीमो राहुल गांधी के द्वारा सौंपी गई थी! शुरू में सिर्फ दो ही नाम थे उस समय के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल, और दूसरे महाराजा टीएस सिंह देव। दोनों की आपसी प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए हाईकमान ने एक नया रास्ता निकाला। उस समय के तत्कालीन दुर्ग सांसद ताम्रध्वज साहू को विधायक का चुनाव लड़ाया गया।

उस समय की चुनावी परिस्थिति को देखा जाए तो कांग्रेस को भी यकीन नहीं था कि वह इतने अप्रत्याशित बहुमत से आएगी। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह थी प्रशासनिक आतंकवाद! जिस भाजपा ने 15 साल राज किया था, उसे 15 सीट भी नसीब नहीं हुई! उसे मात्र 14 सीट में संतोष करना पड़ा!! इसके पीछे सबसे बड़ी वजह बनकर आयी कि उस समय के तत्कालीन सीएम रमन सिंह का अपने विधायको और अपने नेताओं से ज्यादा प्रोफेशनल और प्रशासनिक मशीनरी पर भरोसा करना!

कांग्रेस ताबड़तोड़ बहुमत के साथ सरकार में आई। पार्टी हाईकमान ने तो अंतरयुद्ध को पहले ही महसूस कर लिया था इसलिए.. शुरुआती दौर पर सीएम पद के लिए सांसद से विधायक बने ताम्रध्वज साहू पर अपना ठप्पा लगा दिया था, मगर पिछले कई सालों से मेहनत कर रहे तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और कांग्रेस सुप्रीमो राहुल गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट जन घोषणा पत्र के सूत्रधार रहे टीएस सिंह देव पीछे हटने वालों में से नहीं थे। 24 घंटे की मैराथन बैठक के बाद ताम्रध्वज साहू ने अपने आप को इस झमेले से बाहर कर दिया। इसके बाद तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और राहुल गांधी के करीबी टीएस सिंह देव के बीच मुकाबला था। सरगुजा क्षेत्र से जहां से टीएस सिंह देव आते हैं। सीएम बनने का इतना जबरदस्त माहौल उठा कि सब को लगा कि सीएम अब टीएस बाबा ही होंगे.. लेकिन अचानक से भूपेश बघेल सीएम के रूप में घोषित किए गए! इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी कि पार्टी रूल के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते पहला हक उनका ही बनता है। इसी बीच कुछ महीने बाद खबर आई कि इन दोनों के बीच ढाई ढाई साल के फार्मूले के बीच कॉम्प्रोमाइज हुआ है। इस पर आलाकमान ने भी हामी भरी है।

इसके बाद शुरू हुआ मंत्रिमंडल के गठन और राजनीति की बिसात का खेल! सीएम भूपेश बघेल ने भूतपूर्व सीएम रमन सिंह के पद चिन्हों पर चलते हुए फाइनेंस विभाग अपने पास रखा! जबकि टीएस सिंह देव मीडिया में खुल कर बोल चुके थे कि उन्हें फाइनेंस में दिलचस्पी है। लेकिन जब पत्ता खुला तो बाबा के हाथ में सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रालय ही था।

इसी बीच कोरोला महामारी का भयानक दौर आया। स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते इस मामले में उनकी तवज्जो ज्यादा होनी थी मगर…? सारा क्रेडिट सीएम भूपेश बघेल अपने हाथ ले गए! यहां तक की एक बार स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव द्वारा कलेक्टरों की मीटिंग ली गई क्योंकि उस समय सारी पावर कलेक्टरों के हाथ में थी ! मगर आनन-फानन में सब कुछ रिजेक्ट हो गया.. महामारी की पूरी कमान सीएम भूपेश बघेल संभाल रहे थे, इसके साथ ही जब ढाई साल के फार्मूले के हवा मिली तो सीएम भूपेश बघेल का दौरा सरगुजा क्षेत्र में बढ़ गया। जहां से राजा साहब टी एस सिंहदेव आते हैं। नतीजा टी एस सिंह देव को उनके क्षेत्र के एक विधायक बृहस्पति सिंह ने हाल ही में ऐसा आरोप लगाया, जो पचने के लायक नहीं था! उन्होंने कह दिया कि वह भूपेश बघेल के समर्थक है.. इसलिए बाबा ने उन पर हमला करवाया!

हालांकि जब बाबा अपनी जिद पर अड़ गए। उन्होंने विधानसभा भवन का भी त्याग कर दिया.. उसके बाद बात बढ़ी, हाईकमान की दखल के बाद वृहस्पति सिंह बैकफुट पर आ गए.. लेकिन, उसके पहले तक बाबा की छवि पर काफी धक्का पहुंच चुका था! बाबा अब अपने आप मानने वालों में से नहीं थे। अब ढाई साल के फार्मूले के बात की फिर से हवा उठी।

गौरतलब है कि इस हफ्ते की मंगलवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव और पार्टी अध्यक्ष पीएल पुनिया, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच एक गुप्त मीटिंग हुई.. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला! लेकिन इसी बीच एक बड़ी खबर आई सीएम भूपेश बघेल बुधवार को वापस रायपुर आ गए और शुक्रवार को भूपेश बघेल के समर्थन में 54 विधायक राहुल गांधी के समक्ष पहुंचने वाले हैं। सुबह 9:30 बजे सीएम भूपेश बघेल दिल्ली के लिए निकलेंगे दोपहर 4:00 बजे पार्टी सुप्रीमो राहुल गांधी से मीटिंग करेंगे।

कहा जा रहा है कि इस विवाद के समाधान में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की भी बड़ी भूमिका हो सकती है। शीर्ष नेतृत्व उनसे इस संबंध में सलाह-मशवरा कर रहा है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस नेतृत्व की मौजूदा पीढ़ी में अधिकतर लोग दिग्विजय सिंह के करीबी हैं। उनको प्रदेश की राजनीतिक समझ भी अधिक है। उनसे मिलकर समाधान की ओर ले जाने की कोशिश हो रही है।

गौरतलब है कि टीएस सिंहदेव के समर्थक जून के बाद से ही लगातार इस कमिटमेंट को लेकर आक्रामक रहे हैं। वे विभिन्न प्लेटफार्म, पार्टी फोरम पर टीएस को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग उठाते रहे हैं। हालांकि टीएस इस मुद्दे पर हमेशा पार्टी लाइन की बातें करते रहे। उन्होंने गुरुवार को भी कहा कि टीम का हर खिलाड़ी कप्तान बनने की सोचता है, लेकिन सवाल उसकी सोच का नहीं क्षमता का है। अब फैसला हाईकमान करेगा।

बहरहाल एक हफ्ते से दिल्ली में बैठे बाबा टीएस सिंहदेव का एक बहुत बड़ा बयान आया जिस ने स्पष्ट कर दिया और पूरे कथन का सार यह था कि छत्तीसगढ़ में सब कुछ ठीक नहीं है उन्होंने कहा कि हर किसी को कैप्टन बनना है ! यहां कोई भी आगे तय नहीं है, पार्टी आलाकमान तय करेगा!

कल शुक्रवार का दिन छत्तीसगढ़ के इतिहास के लिए काफी खास दिन रहेगा और विशिष्ट रूप से कहा जाए तो कांग्रेस पार्टी के लिए…

Related Articles

Back to top button