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आलेख – भूमिपूजन के बाद जब पूरा देश राममय हो गया तो राजनैतिक दलों ने पाला बदलने में ही भलाई समझी डॉ. चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

पांच अगस्त के बाद पूरा देश राममय हो गया । पहले अल्प संख्यक की राजनीति फिर जब पासा पलट ही गया है और मंदिर किसी भी सूरत मे शिलान्यास से रूकने वाला नहीं है तो राजनीतिक होशियारी इसी मे है अपना स्टैंड बदल लो । वैसे भी यह राजनीतिक रूप से तय है कि अल्पसंख्यकों के वोट वैसे भी राष्ट्रवादी विचारधारा वाले पार्टियों को तो जाते नहीं है तो कम से कम आखिर समय में बहुसंख्यकों को यह दिखाने मे हमे यह संदेश देने की कोशिश करना है कि हम मंदिर मुद्दे पर आपके साथ है । पर अभी भी आंतरिक रूप से किसके साथ है सबको पता है । अब सबको राम का मर्यादा पुरुषोत्तम राम दिख रहा है । अब वो प्रसंग ढूंढ कर लाने की कोशिश की जा रही है कि बोल सके हमारे भी राम है । राम दयालु है और यहां के लोग भी दयालु है इसीलिए एक नामचीन अधिवक्ता के आत्म हत्या के संकल्प को याद कर भूल गये । हालात तो यह है कि जो इसका विरोध कर रहे थे उन लोग मुहूर्त के लिए बहुत ज्यादा चिंतित थे । उनहोंने आगाह भी किया पर जनता जनार्दन के बीच अपनी साख खो चुके थे । आजकल एक उभरती नेत्री जब यह कहने लगे राम दयालु थे तो सहसा विश्वास भी नहीं बैठता । क्योकि सात दशकों से कभी भी ऐसा मौका इन्होंने अपने हाथों से जाने नहीं दिया जब मंदिर के कोशिश पर इन्होंने पानी नहीं फेरा हो । मंदिर को लेकर जितने भी बयान है उसको यह देश भूला नहीं है । चाहे मंदिर के अस्तित्व को लेकर हलफनामे हो सिर्फ मकसद राम के अस्तित्व से इंकार करने से ज्यादा बहुसंख्यकों की भावनाएं आहत करने का मकसद ज्यादा रहता था । वहीं इनका मकसद भी यह मुद्दा जितना दिन जिंदा रह्ता उतने ही दिन राजनीति की दुकान बेखौफ़ चलती । इतना ही राम प्यारे थे मर्यादा पुरुषोत्तम थे फैसले से लेकर शिलान्यास तक वहीं साकेत गोखले के न्यायालय मे जाने तक समझ नहीं आया था । अभी आप लोगों को जितना प्यार भारतीय संस्कृति पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर दिख रहा है उतना ही विश्वास व प्यार अगर आपको काशी विश्वनाथ और कृष्ण जी के मथुरा पर भी दिखता और आप लोग यह स्वीकार कर लेते है तो पूरे देश को आप लोगों पर विश्वास हो जाता । ऐसा कर यह मामला आप लोगों के सहयोग से सुलझा लिया जाता । पर ऐसा आप लोग नहीं करेंगे पूरी राजनीति ही यू टर्न ले लेंगी । मै तो आश्चर्य चकित हू कि राजनीति क्या नहीं करा देती गधे को भी बाप बनाने के लिए मजबूर कर देती है । कल तक एम वाय पर राजनीति करने वालो को भी परशुराम जी राम याद आ रहे हैं । परशुराम नही कल तक इन्हे इनसे उपेक्षित ब्राह्मण याद आ रहे है । यह ग्यारह प्रतिशत ही इन्हे परशुराम की तरफ खींचने को बाध्य कर रहा है वही इनसे हर जिले मे परशुराम की मूर्ति लगाने की घोषणा करवा रहा है । फिर दूसरी पार्टी कैसे पीछे रहती दलित की राजनीति करने वालो को भी सवर्ण वो भी ब्राह्मण के लिए आज नतमस्तक होना पडे यह चमत्कार सिर्फ राजनीति मे ही संभव है । यही कारण है कि इनकी राजनीति की विवशता देखिए पहली पार्टी के परशुराम की मूर्ति से इनके मूर्ति की उंचाई ज्यादा रहेंगी । भैया मै आप लोगों को बता दू कि परशुराम जी की मूर्ति और उसकी उंचाई देखकर कम से कम कोई भी ब्राह्मण वोट नहीं देगा । यह समुदाय प्रत्याशी और घोषणा पत्र पर वोट डालेगा । चलो अच्छा है कल तक अपने को धर्म निरपेक्ष दिखाने वाली पार्टीयां भी वोटों के इस मायाजंजाल मे भारतीय जनता पार्टी की राह पकड़ ली है । कल यह भी दिखने लगे कि सत्ता की चाह मे भाजपा से पहले यह पार्टीयां काशी मथुरा के लिए आगे आ जाये तो कोई बड़ी बात नहीं है । यह तय है मोदी जी ने और योगी जी ने इन्हे अपने एजेंडा को नेपथ्य में डालने के लिए मजबूर तो करवा ही दिया । अब इन्हे बहुसंख्यक लोगों के वोटों की चिंता होने लगी है । वही यह भी कि अपने को धर्मनिरपेक्षता के कहने वाले दल बहुतायत में है । इसी कारण वोटों का विभाजन भी इन्ही मे है यही बात कल तक जो इन्हे सत्ता में बैठाता था वहीं बात आज इन्हे सत्ता से विमुख कर रही हैं । वहीं बहुसंख्यक वोटों मे कोई विभाजन नहीं है यही इनके लिए चिंता का विषय है । आने वाले दिनों में यह सब लोग भी मंदिर की राजनीति करते दिखाई दे तो कोई आश्चर्य वालीं बात नही है । निश्चित मोदी जी ने इन सबको राममय बना दिया यह ही भारतीय संस्कृति और राजनीति की जीत है । इसके लिए बधाई । बस इतना ही
• डा . चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

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