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विश्व फोटो ग्राफी दिवस विशेष – अब बदल गई है फोटोग्राफी की परिभाषा – डॉ चंद्रकांत रामचंद्र वाघ

आज हम विश्व फोटो ग्राफी दिवस मना रहें हैं । पर यह दिन कितने समय से वहीं खडा है और फोटो ग्राफी मे कितना परिवर्तन हुआ है । यह सबके सामने है । पहले वो समय जब फोटो लेने काले पर्दे के अंदर घुसा कर ओके करता था और सामने से लेंस का कवर निकालकर फोटो खींचता था । फिर वो डेवलप होकर एक हफ्ते मे या उससे ज्यादा समय में अपने पास आती थी । फोटो खीचाने के पहलें अचछे से तैयार होना फिर फोटो ग्राफर का अपने सिर को सीधे रखने के लिए कहना वहीं कई बार तो फोटो ग्राफर को यह प्रक्रिया दो से तीन बार करनी पडती थी । वहीं उस समय फोटो के सभ्य पता नहीं लोग क्यो सीरियस हो जाते थे । तब फोटो खींचने के पहले मुसकुराते रहने की हिदायत देना यह आम बात होती थी । उस जमाने मे स्टूडियो में टाई कोट भी रखा जाता था जिसे पहनकर लोग फोटो खींचा कर अपने मे एक साहब होने का रौबिलापन देखते थे । कई बार तो मेले मे भी फोटो होती थी वहा भी मोटर साइकिल कार मे सपतिनक बैंकर लोग फोटो खींचाते थे । उस समय मोटर साईकिल या कार मे बैठना ही बहुत बडी बात होती थी । यह शौक लोग वहां जाकर पूरा करते थे । शादीयों मे भी फोटो का बजट मध्यम वर्ग के लिए एक बोझ से कम नहीं होता था । शायद जो आज भी है । मै पुनः विषय पर आया जाये ब्लैक फोटो के कैमरे भी रखकर फोटो ग्राफी का शौक पूरा करतें थे । पर अनजान आदमी से कई बार रील लोड करने मे एक्सपोज होने से रील खराब हो जाती थी । फोटो मे आमूल-चूल परिवर्तन आया रंगीन फोटो से । लोगों को लगने लगा कि फोटो बोल रही है । लोगों को फोटो देखकर लगने लगा कि मै भी इतना अच्छा दिखता हू । रंगीन फोटो होने से बडे बडे लैब खुलने लगे हालात यह हो गई कि जिस फोटो के प्रिंट आउट के लिए चार से पांच दिन इंतजार करना पड़ता था वो दो चार घंटे मे ही मिलने लगी । लोगों ने अपने पास रंगीन फोटो के कैमरे रखने लगे । पर विज्ञान का अंत यही नहीं है फिर उसने डिजिटल कैमरे के तरफ बढ गये । जहा रील न धुलवाने का झंझट आप मुफ्त मे फोटो ग्राफी कर लैपटाप मे डाल लो । पर इसमे स्टूडियो का बहुत बड़ा रोजगार खत्म हो गया । बडे बडे लैब समय की मार खाकर अपने अस्तित्व की लडाई लड रहे हैं । फिर एक और क्रांति और आई इसने डिजिटल कैमरे को भी बायकाट करने के लिए बाध्य कर दिया । हर मोबाइल मे अच्छे कैमरे से युक्त मोबाइल आने लगे । फिर तो क्या आपके हाथ का मोबाइल जो फोन का काम करता है जो घडी का करता था अब वो कैमरे का भी काम करने लगा । इसके कारण हर आदमी फोटो ग्राफर बन गया कहीं भी जाओ कितने भी फोटो खींच लो । लोगों में सेलफी का शौक चढाना गया हालात यह हो गए सेलफी के कारण लोगों ने अपनी जान तक गंवाई । पर हर सुंदर दृश्य को कैमरे मे कैद करना और वाटसअप व फेसबुक में शेयर करना एक आम बात हो गई है । आज के दिन मै अपने रायपुर के स्टूडियो की चर्चा न करू तो नाइंसाफ़ी होगी । रायपुर मे फेमस फोटो स्टूडियो सेंट्रल आर के प्रकाश फोटो स्टूडियो गोडबोले फोटो स्टूडियो और भी थे याद नहीं आ रहा है । वहीं अजंता लैब जहां हर समय काफी भीड़ रहती थी । दाऊ जी हर समय मुसकुराते हुए जल्दी देने की बात कर ते थे । बस इतना ही फोटो ग्राफी दिवस की बधाई
डा .चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

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