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राजनांदगांव के प्रसिद्ध मामा भांजा मजार में लटके है मन्नतों के हजारों ताले, सबकी होती है मुराद पूरी

आशीष शर्मा राजनांदगांव – मामा-भांजा मज़ार की रेलिंग में लटके हुए सैकड़ों ताले अपने साथ मन्नतों की आस भी लिए हुए हैं। मन्नती अपनी ईच्छा की पूर्ति की आस लिए हुए ताले लॉक करते हैं और अपने ताले के लॉक को अपने-आप खुलने की आस रखते हैं। मान्यता है कि मन्नतों के पूरे होने पर तालों के लॉक अपने आप खुल जाते हैं। वही देश के अलग अलग हिस्सों से लोग अपनी साध्य बीमारियों और मन्नतो को लेकर इस मजार में आते है और उनकी मुराद पूरी होती है इसके साथ ही बच्चो को नजर लगने पर मजार लेकर आते है।

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वहीं लोगो का कहना है की मामा भाचा के मजार में ताले लगाने का सिलसिला लगभग 39 वर्ष पपहले एक फरियादी के द्वारा लगाए गए ताले के बाद शुरू हुआ कहा जाता है कि किसी व्यक्ति ने मन्नत करते समय नए ताले को ग्रील में लॉक कर दिया और चाबी अपने साथ ले गया। उस व्यक्ति की मन्नत पूरी होने पर ताला खोलने आया तो वह ताला खुल चुका था और उसके बाद लोग एक के बाद एक ताले मजार पर लगाने लगे।.शहर के पुरानी गंज लाइन रोड के किनारे मौजूद इस मजार में मामा भाचा दोनों की मजारे एक ही जगह पैर है एक ही जगह पर दो मजारे और मजार की रेलिंग में लॉक हुए विभिन्न ताले मजार को विशेष बनाते है। अपनी अलग -अलग परम्परा के चलते मामा भाचा का यह मजार श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है अब दूर दराज से लोग यहां अपनी मन्नत के ताले लगाने आते है।

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आस्था का केंद्र बना राजनांदगांव का यह मजार पिछले 35 सालो से सामाजिक सौहाद्र का उदाहरण पेश कर रहा है इस मजार के मुजावर [खादिम ] हिन्दू है। खादिम राजेश तिवारी हिन्दू धर्म से है इसके बावजूद हर दिन शामके वक्त यहाँ मजार में अपनी मुरादे लेकर आने वाले लोगो को इबादत कराने का काम कर रहा है। राजेश तिवारी का कहना है की यह मजार 400 सौ साल पुरानी है, हिन्दू खादिम राजेश तिवारी बचपन से ही इस मजार की सेवा करते आ रहे है। बचपन में इस मजार में पानी भरने का काम किया करते थे कुछ सेवा करने की भावना मन में ठानी और आज तक सिलसिला चल रहा है।

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इस मजार में एक और खादिम है जो पिछले 50 सालों से इस मजार की सेवा कर रहा है। खादिम मोहम्मद कासिम बताते है की मामा भाचा मजार के पीछे कहानी है की करीब 400 साल पहले राजवाड़े के समय एक मामा और उनके भांजे राजा के सिपाहसलार थे उस वक्त मोहला मानपुर रियासत ने राजनादगांव रियासत पर हमला बोल दिया। अपनी रियासत को बचाने की कोशिश में इसी जगह में मामा और भांजे ने शहादत दी थी। उस वक्त यह जगह वीरान और जंगल हुआ करती थी और इसी जगह पर मामा और भाचा की मजार बनाया गई तब से यह आस्था का केंद्र बना हुआ है।

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इस मजार में सभी धर्म के लोगो की आस्था है यहाँ लोग अपनी मन्नत लेकर आते है और मन्नत की ताले बांधते है। मान्यता है की यहाँ अपनी जायज मुरादों को लेकर ताले लगाने वालो पूरी होने का सिलसिला लगातार जारी है। कहते हैं कि जितने ताले अभी यहाँ लगे है उससे ज्यादा मन्नत पूरी होने पर खुल भी चुके है। ताले लगाकर मन्नत पूरी करने वाले मजार की जानकारी मिलने पर लगातार यहाँ ताले लगाने वालो की संख्या बढ़ती जा रही है और यहाँ प्रतिवर्ष पर्व भी मनाया जाता है और लाखो की संख्या में लोगो का जमावड़ा होता है।

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