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गरियाबंद – सुपेबेड़ा सहित 10 गांव के लोगो ने राज्यपाल से की इच्छा मृत्यु की मांग, क्यों नाराज है ग्रामीण

गिरीश गुप्ता गरियाबंद – सुपेबेड़ा सहित आसपास के 10 गांव के ग्रामीणों ने इच्छा मृत्यु की मांग की है। ग्रामीणों ने आज इससे पहले कलेक्ट्रेट में एकदिवसीय धरना प्रदर्शन किया और फिर राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपकर इच्छा मृत्यु की मांग की। ग्रामीण शुद्ध पेयजल नही मिलने से नाराज है। और इसके चलते गांव में किडनी की बीमारी से लोगो की मौत होने की बात कह रहे है।

ज्ञात हो कि सुपेबेड़ा गांव की पहचान देश और दुनिया मे एक किडनी प्रभावित गांव के रूप में होती है। बीते 4 सालों में यहां किडनी की बीमारी से 70 से अधिक मौतें हो चुकी है। दूषित पानी इसकी प्रमुख वजह बताई गई। सरकार ने ग्रामीणों को दूषित पानी पीने से मुक्ति दिलाने के लिए कई घोषणाएं की, दावे भी किए, मगर ना योजनाएं पूरी हुई ना दावे। हालात ये है कि ग्रामीण आज भी दूषित पानी पीने पर मजबूर है। नाराज ग्रामीणों ने आज कलेक्ट्रेट पहुंचकर राजयपाल के नाम ज्ञापन सौंपकर इच्छा मृत्यु की मांग की है।

ग्रामीणों का कहना है कि कांग्रेस सरकार ने तेल नदी का पानी सुपेबेड़ा सहित आसपास गांवो तक पहुंचाने के लिए जलप्रदाय योजना शुरू की थी। सरकार ने योजना से सुपेबेड़ा सहित आसपास के गांवो को शुद्ध पेयजल मिलने और योजना के जल्द पूरा होने का दावा भी किया था। मगर योजना फाइलों में ही उलझ कर रह गयी और अब तक धरातल पर नजर नही आयी। जिसके चलते ग्रामीणों को दूषित पानी पीने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

ग्रामीणों ने राज्यपाल के नाम कलेक्टर को सौंपे ज्ञापन मे कहा कि दूषित पानी पीने से सुपेबेड़ा और आसपास गांवो में 90 से अधिक मौतें हो चुकी है। ग्रामीणों ने बीमारी की प्रमुख वजह दूषित पानी को बताया है। ग्रामीण लंबे समय से शुद्ध पानी की मांग कर रहे है। सरकार ने दावे भी किए मगर पूरे नही किए।

ग्रामीणों ने बताया कि डेढ़ साल पहले राज्यपाल अनसुइया उइके स्वयं गांव का दौरा कर हालात का जायजा ले चुकी है। राज्यपाल ने भी अपने दौरे के बाद सरकार को गांव में जल्द से जल्द शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के निर्देश सरकार को दिए थे। मगर उनके निर्देश के बाद भी काम मे कोई गति नही आई।

ग्रामीणों ने बताया कि जल प्रदाय योजना की फाइल सालभर से मंत्रालय में पड़ी धूल खा रही है। इसको लेकर ना अधिकारियों को चिंता है ओर ना सरकार को। जिसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है।

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