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गुरु पूर्णिमा विशेष लेख – आज की पीढ़ी इसकी महत्ता से अंजान – डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

आज गुरु पूर्णिमा है । इस देश मे गुरु का महत्व है । आज की शिक्षा पद्धति के बावजूद भी इस देश के संस्कार ही है जब हम सर बोलने के बाद भी संस्कार के चलते ही गुरु ढूंढने लगते है । लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के बावजूद किसी गुरू का सहयोग उस बंदे को आजन्म याद रहती हैं । इस देश मे गुरु पूर्णिमा की परंपरा पांच हजार साल पहले की है।

मैं उस बात से इस दिन कि शुरुआत करूंगा जब अयोध्या के राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को शस्त्र की दीक्षा लेने गुरु वशिष्ठ का पास भेजा था। जिसने आगे चलकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम वहीं लक्ष्मण जैसा भ्राता वहीं भरत जैसा आज्ञाकारी भाई भरत जैसा भारत को मिले जो आगे हमारे आराध्य बने । यही कारण है कि रामलला के जन्म भूमि को हम आज आज सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से हमें मिला।

गुरु पूर्णिमा का महत्व आज भी हम उज्जैन के संदीपनी आश्रम मे जाकर आज भी महसूस कर सकते हैं । यही संदीपनी आश्रम मे श्री कृष्ण बलराम मथुरा से संदीपनी आश्रम मे दीक्षा लेने आए। यही कृष्ण जी से सुदामा जी से मित्रता हुई थी जो आज भी हमारे संस्कृति का हिस्सा है । यही कारण है कि आज भी दोनों दोस्तों मे अंतर सुदामा कृष्ण ही याद आता है।

आगे चलकर गुरु द्रोण के बारे मे भी गुरु पूर्णिमा मे उल्लेख करना जरूरी है । गुरु द्रोण जिन्होने पांडव और कौरव को युद्ध मे पारंगत किया । हमने आगे चलकर धुरंधर अर्जुन और गदादारी भीम से यह देश परिचित हुए । कहते हैं गुरु द्रोणाचार्य की वो अपराध जिसने एकलव्य से अपनी गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग लिया वो भी कभी-कभी लोगों के जेहन में भी आज भी है कि कोई गुरु अपने शिष्य अर्जुन के सर्वोत्तम बनाने कारण यह कृत्य आज भी क्षमय नहीं है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु शिष्य की परंपरा सबसे ज्यादा संगीत मे दिखाईं देतीं है । यही कारण है कि घराने की परंपरा भी यही पडी है । एक संगीत का छात्र होने के कारण मैंने इसे सब पास से देखा है । यही कारण है कि संगीत महाविद्यालय मे गुरु पूर्णिमा मे संगीत के कार्यक्रम आयोजित होते है । यही इनकी अपने गुरु के लिए सादरांजलि रहती है ।

वहीं हमारे यहां कुश्ती के क्षेत्र मे मल्ल युद्ध के क्षेत्र मे यह परंपरा का निर्वाहन करते देखा गया है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गुरु पूर्णिमा मे पूरे देश में गुरु दक्षिणा का पर्व शुरू से मनाने की एक अप्रतिम पहल स्वंय सेवको ने ही करी है । वहीं मै उन लोगों को भी देखता हू जिन्होने किसी गुरू से दीक्षा ली है तो गुरु पूर्णिमा मे गुरु दक्षिणा के साथ उनका आशीर्वाद लेने जरूर जाते है ।

भले आज हम दुर्भाग्य से शिक्षा के कारण जो परिवर्तन हुए हैं इसके चलते आज की पीढ़ी इसकी महत्ता से अंजान है । इसके लिए उनसे ज्यादा हम दोषी है जिन्होने टीचर्स डे तो जोर शोर से मनाते है वही गुरु पूर्णिमा को हाशिये मे डालने से नहीं चूक रहे हैं । अच्छा होता दोनों परंपरा चलती रहती । आप सबको गुरु पूर्णिमा की अनेकानेक बधाई वहीं उन सभी गुरूओ को प्रणाम जिन्होने मेहनत कर बच्चों को निखारा । आज जो भी हम है इन गुरुओ की लगन ही है । बस इतना ही डा .चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

(लेखक डा .चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ जाने माने आयुर्वेद चिकित्सक हैं एवं विभिन्न समाचार पत्रों में उनका लेख प्रकाशित होता है। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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