दीपावली साल भर का तयौहार उमंग से भरपूर पर्व जिसने अब अपने पैर व्हाइट हाउस तक मे पसार लिए है। अब तो ब्रिटिश सरकार व प्रधानमंत्री भी दीपावली का जिक्र कर रहे हैं। यह हमारे संस्कृति की जीत है जो विदेशियों को आकर्षित कर रही हैं। देश मे भी इसे हर जगह अपने तरीकों से मनाया जाता है। पर एक बात की यह विशेषता है कि हर राज्यो की अपनी संस्कृति अंतर पहचान अलग अलग है । पिछले कुछ समय से योगी आदित्य नाथ जी के कारण से अयोध्या की दीवाली विदेशियों को खासकर के आकर्षित कर रही हैं। दियों से जगमगाता सरयू नदी का नदी का तट और मर्यादा पुरुषोत्तम राम की अयोध्या अपनी भव्यता की कहानी याद दिलाता है । लोगों की खुशी भी इतनी ज्यादा रहती है कि पहले का एक कहावत ” दीवाली दीवाला ” निकालती है । यह काफी हद तक सच भी है । पर हमारे या आम आदमी का उत्साह ही दीपावली का माहौल बनाता है । फिजा में गूंजती मै छत्तीसगढ़ मे ही आऊंगा ” सुवा ” की सुमधुर करतल के साथ ध्वनी माहौल को आनंदित कर देती है । आजकल तो अब छोटी छोटी बच्चियाँ भी सुवा के लिए आने लगी है। सबेरे से आठ दस किलोमीटर पैदल चलकर सुवा गीत गाना कभी-कभी उनके घर के हालात भी कह देते है । सबेरे से नंगे पैर ठंडे मे निकलना यह घर की मजबूरी भी है । मैंने देखा है कि मात्र कुछ पैसो मे ही उनके चेहरे की रौनक और खुशी बयां करती है। फिर दिल से भगवान से दुआएं मांगना यह धन्यवाद देने का अपना ही तरीका है। दीपावली की बात हो और ” राऊत नाचा ” का जिक्र न हो तो छत्तीसगढ़ की दीवाली ही अधूरी है। पर महंगाई ने भी इनको अपने चपेटे मे ले लिया है। इसलिए कुछ सालों से पहले की अपेक्षा अब यह कम होते जा रहा हैं । इसमे लगने वाला ” गडवा ” बाजा काफी महंगा हो गया है। फिर उन लोगों का खाना पीना भी अलग से काफी महेंगा हो गया है। इसलिए जिन लोग राऊत नाचा के लिए निकलते हैं उन्हे यह खर्चे की याद सताती रहती है । पर इनकी जोर जोर से बजने वाले गडवा बाजे की आवाज फिर साथ मे गाये जाने वाले दोहा की गूंजती आवाज के साथ बाद मे जब सब मिलकर अपनी जबरदस्त आवाज में साथ देते है तो ऐसा महसूस होता है कि यह लोग बहुत पास मे है । पर रहते बहुत दूर है। निश्चित इन लोग दीपावली का माहौल बना देते है। एक बात हर समय आम दिखती है कि अपने ठाकुर से जो मिलता है यह जो सोचकर आए रहते है उसमें बैठता है तो सहर्ष मान लेते हैं। पर नहीं तो अपनी जिद मे ठाकुर को मनवा कर ही छोड़ते हैं। या फिर कभी-कभी निगोशिएशन चलते रहता है। शायद यह मजबूरी रहती हैं जो खर्चे के चलते ही बनती हैं। इनकी यह आवाज को सुनकर इनसे जिनको सामना नहीं करना रहता है उन्हे समय भी मिल जाता है। आमतौर पर इनकी चमकीली पोशाक और कई लोग जो फेंटा बांधते है वो काफी आकर्षक रहता है। फिर इसमें कवडी छोटे शंख की दोनों बाहुओ की माला देखते ही बनती है। कौन होगा जो आज के समय इस तरह के कामों में अपना बहुमूल्य समय देकर दूसरो के घर रौनक लायेगा। यही लोग है जो गली गली घूमकर अपनी आवाज़ के माध्यम से दीपावली के दिनों का अहसास कराते हैं। आमतौर पर यह लोग अपने घर देर रात ही पहुंच पाते हैं। अगर कोई वयक्ति समृद्ध है तो दीपावली मे उसका नाश्ता भी उतना ही उसके हैसियत का रहता है । ड्राय फूट से सजी तश्तरी औपचारिकताओ के बोझ तले कितनी कातिल निगाहों से वैसे के ही वैसे अपने शान के साथ वैसे ही अपने मालिक को वापस मिलतीं है। इसे कहते है शान के साथ दीपावली। वहीं कहीं कहीं घर से बनी प्लेट जब सामने आती है औपचारिकता भी खत्म हो जाती है वहीं प्लेट खत्म होकर पुनः अपने पन का अहसास कराते हुए लाने का मौन संदेश तो दे ही देती है । जितने ही ज्यादा गरीब के घर जाओगे स्वागत से आल्हादित कर देगा। मेरे छत्तीसगढ़ का गौरी गौरा इस त्यौहार मे पूरी तरह से धार्मिक रौनक लाकर रख देते हैं। दियों से जगमगाता शहर गांव हर घर के दीपावली की खुशी को दर्शाता है। आप सब लोगों को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। बस इतना ही
डॉ. चंद्रकांत रामचंद्र वाघ




