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कोवैक्सीन पहले फेज के ट्रायल में हुवा सफल, नहीं है कोई साइड इफ़ेक्ट

स्वदेशी कोरोना वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ ने पहले फेज के क्लीनिकल ट्रायल में बेहतर इम्यून रिस्पॉन्स दिखाया है. ट्रायल के दौरान इस वैक्सीन का वालंटियर पर कोई साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिला है. पहले चरण के क्लीनिकल ट्रायल के अंतरिम नतीजों से पता चला है कि सभी आयुवर्ग के समूहों पर कोई गंभीर या प्रतिकूल प्रभाव देखने को नहीं मिला है. विदेशी पोर्टल ‘मेडआरएक्सआईवी’ में दावा किया गया है कि वैक्सीन पूरी तरह से सेफ और इफेक्टिव है. भारत बायोटेक की इस वैक्सीन का पहले चरण का क्लीनिकल ट्रायल सितंबर महीने में ही समाप्त हो गया था, जिसके नतीजे अब सार्वजनिक किए गए हैं।

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कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग में कुछ पॉजिटिव खबरें आने लगी हैं. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के सहयोग से भारत बायोटेक द्वारा विकसित स्वदेशी कोविड-19 टीका ‘कोवैक्सीन’ के पहले चरण के क्लीनिकल परीक्षण के अंतरिम नतीजों से पता चला है कि सभी आयुवर्ग के समूहों पर कोई गंभीर या प्रतिकूल प्रभाव देखने को नहीं मिला है।

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मेडआरएक्सआईवी’ पोर्टल पर उपलब्ध कराए गए नतीजों के मुताबिक टीका ने एंटीबॉडी तैयार करने का काम किया. विशेषज्ञों द्वारा औपचारिक रूप से अनुसंधान रिपोर्ट का मूल्यांकन करने के पहले इसे सार्वजनिक तौर पर ‘मेडआरएक्सआईवी’ पोर्टल पर डाला गया. निष्कर्ष के मुताबिक गंभीर असर की एक घटना सामने आयी, जिसका टीकाकरण से कोई जुड़ाव नहीं पाया गया। चरण एक’ के मुताबिक पहले टीकाकरण के बाद कुछ प्रतिभागियों में हल्के या मध्यम किस्म का असर दिखा और यह तुरंत ठीक भी हो गया. इसके लिए किसी तरह की दवा देने की जरूरत नहीं पड़ी. दूसरी खुराक के बाद भी यही रूझान देखने को मिला।

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भारत में हैदराबाद की कंपनी डॉ रेड्डी लैबोरेटरीज के अंतर्गत इस वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है, जो दूसरे और तीसरे फेज़ में है. वैक्सीन के ट्रायल के साथ-साथ प्रोडक्शन को लेकर भी तैयारियां की जा रही हैं. काफी वक्त पहले हैदराबाद की कंपनी डॉ रेड्डी लैबोरेटरीज और रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड के बीच दस करोड़ कोरोना वैक्सीन की खुराक का समझौता हुआ था. भारतीय दवा कंपनी हेटरो और रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड के बीच भारत में स्पुतनिक-V की डोज बनाने का करार हुआ है, जिसके तहत भारत में हर साल करीब दस करोड़ डोज़ तैयार की जाएंगी. उम्मीद के मुताबिक, जनवरी 2021 में बड़े स्तर पर प्रोडक्शन की शुरुआत हो सकती है जिसके बाद वैक्सीन देने का काम शुरू होगा।

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