भारत रत्न डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर, एक योद्धा, मनीषी और समाजसेवी रहे, जानिए उनसे जुड़ी बातें
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर का 14 अप्रैल को जन्मदिन है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू में सूबेदार रामजी शकपाल एवं भीमाबाई की चौदहवीं संतान के रूप में हुआ था। उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता, प्रचंड संग्रामी स्वभाव का मणिकांचन मेल था।
लॉकडाउन के चलते इस साल इंदौर के पास स्थित उनकी जन्मस्थली महू में हर साल होने वाला अम्बेडकर जयंती समारोह नहीं होगा। अम्बेडकर जयंती पर कार्यक्रम आयोजित नहीं होने पर समाजजनों में निराशा है, लेकिन वे सोशल मीडिया पर सभी से अपील कर रहे हैं कि कोरोना संकट के चलते सभी अपने-अपने घरों में ही रहकर जन्मदिन मनाएं।
बता दें कि डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर की अद्वितीय प्रतिभा अनुकरणीय है। वे एक मनीषी, योद्धा, नायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी थे। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में उत्सर्ग कर दिया। खासतौर पर भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. अम्बेडकर का जीवन संकल्प था।
संयोगवश भीमराव सातारा गांव के एक ब्राह्मण शिक्षक को बेहद पसंद आए। वे अत्याचार और लांछन की तेज धूप में टुकड़ा भर बादल की तरह भीम के लिए मां के आंचल की छांव बन गए।
डॉ अम्बेडकर महू में केवल ढाई साल की उम्र तक रहे और फिर वर्ष 1942 में सिर्फ एक बार यहां आए थे। भारत रत्न डॉ. अम्बेडकर की जन्मस्थली महू उनके चाहने वालों के लिए किसी तीर्थ और 14 अप्रैल का दिन किसी बड़े त्योहार से कम नहीं है। यहां साल भर अम्बेडकर अनुयायियों का जमघट लगा रहता है। महू को अब आधिकारिक तौर पर डॉ. आंबेडकर नगर भी कहा जाता है।
गौरतलब है कि इस वर्ष लॉकडाउन के चलते अम्बेडकरस्मारक को फिलहाल बंद कर दिया गया है। अम्बेडकर के अस्थि कलश के पास रोजाना एक मोमबत्ती जलाने के लिए स्मारक व्यवस्थापक और पिछले तीन दशकों से सेवादार रहे मोहन राव वाकोड़े आ रहे हैं। वाकोड़े ने इस बार अनुयायियों से घर पर रहकर ही जयंती मनाने का आग्रह किया है और इस दौरान लोगों से लॉकडाउन के चलते परेशान नागरिकों की मदद करने की अपील की है।
अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थनीति का गहन अध्ययन बाबा साहेब ने किया। वहां पर भारतीय समाज का अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी। इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नई दुनिया के दर्शन किए। डॉ. अम्बेडकर ने अमेरिका में एक सेमिनार में ‘भारतीय जाति विभाजन’ पर अपना मशहूर शोध-पत्र पढ़ा, जिसमें उनके व्यक्तित्व की सर्वत्र प्रशंसा हुई।
उनका लक्ष्य था- ‘सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना।’ डॉ. आंबेडकर ने गहन-गंभीर आवाज में सावधान किया था, ’26 जनवरी 1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी। जल्द से जल्द हमें इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगी। वर्ना जो असमानता के शिकार होंगे, वे इस राजनीतिक गणतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे।’



