श्रीराम के समय का यह मंदिर बताया जाता है क़ुतुबमिनार से भी ऊँचा, नहीं जानते होंगे आप
मुरूदेश्वर मंदिर भगवान राम के समय का है, इसके निर्माण का वर्ष ही अज्ञात है. इसकी ऊंचाई 249 फीट है. अर्थात् सदियों तक यह मंदिर विश्व का सबसे ऊंचा भवन रहा

मुरूदेश्वर मंदिर भगवान राम के समय का है. इसकी प्राचीनता का अंदाजा इस एक तथ्य से हो जाता है कि इसके निर्माण का वर्ष ही अज्ञात है. इसकी ऊंचाई 249 फीट है. अर्थात् सदियों तक यह मंदिर विश्व का सबसे ऊंचा भवन रहा। किसी भी पाठ्य पुस्तक में इस मंदिर का कोई उल्लेख भी आपने देखा सुना या पढ़ा हो।
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बता दें कि इतिहास में जब भी ऊंची इमारतों की बात आयी तो केवल कुतुबमीनार का ही महिमामंडन देखने सुनने पढ़ने को मिला, लेकिन मुरूदेश्वर मंदिर का कोई जिक्र तक नहीं किया गया ? क्यों ? बता दें कि कर्नाटक में उत्तर कन्नड जिले की भटकल तहसील स्थित एक कस्बा है मुरूदेश्वर. यह कस्बा अरब सागर के तट पर स्थित है और मंगलुरु से 165 किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे बहुत ही सुन्दर एवं शांत स्थान पर है।
बता दें कि मुरुदेश्वर सागरतट भारत के सब से सुन्दर तटों में से एक है। भगवान शिव का ही एक नाम मुरुदेश्वर भी है। कन्दुका पहाड़ी पर, तीन ओर से पानी से घिरा यह मुरुदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. यहाँ भगवान शिव का आत्म लिंग स्थापित है, जिस की कथा रामायण काल से है।
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कहते हैं कि अमरता पाने हेतु रावण जब शिव जी को प्रसन्न करके उनका आत्मलिंग अपने साथ लंका ले जा रहा था। तब रास्ते में इस स्थान पर आत्मलिंग धरती पर रख दिए जाने के कारण स्थापित हो गया था. गुस्से में रावण ने इसे नष्ट करने का प्रयास किया उस प्रक्रिया में, जिस वस्त्र से आत्म लिंग ढका हुआ था वह म्रिदेश्वर जिसे अब मुरुदेश्वर कहते हैं में जा गिरा. इस की पूरी कथा शिव पुराण में मिलती है.
यहां भगवान शंकर की विश्व की दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति स्थित है. इस मूर्ति का निर्माण बाद में किया गया है। मुरुदेश्वर मंदिर के बाहर बनी शिव भगवान की इस मूर्ति की ऊंचाई 123 फीट है.अरब सागर में बहुत दूर से इसे देखा जा सकता है. इसे बनाने में दो साल लगे थे और शिवमोग्गा के काशीनाथ और अन्य मूर्तिकारों ने इसे बनाया था।
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कहा जाता है कि इसका निर्माण भी श्री आर एन शेट्टी ने करवाया और लगभग 5 करोड़ रुपयों की लागत आई थी.मूर्ति को इस तरह बनवाया गया है कि सूरज की किरणे इस पर पड़ती रहें और यह चमकती रहे. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय इस मूर्ति की सुंदरता और दिव्यता कई गुना बढ़ जाती है।