संतान की लम्बी आयु के लिए हलषष्ठी व्रत का जानिये शुभ मुहूर्त एवं महत्व
हल षष्ठी का त्योहार भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। ललही छठ, हलषष्ठी या हल छठ के नाम से जाने वाले इस व्रत के दिन महिलाएं संतान सलामती के लिए पूजा करती हैं।
हिंदू पंचांग में हल षष्ठी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को समर्पित है। भगवान बलराम माता देवकी और वासुदेव जी के सातवें संतान थे। हल षष्ठी का त्योहार भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। ललही छठ, हलषष्ठी या हल छठ के नाम से जाने वाले इस व्रत के दिन महिलाएं संतान सलामती के लिए पूजा करती हैं। जन्माष्टमी से दो दिन पहले हलषष्ठी या हल छठ का पर्व मनाया जाता है इसे बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह पर्व 9 अगस्त को है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ललही छठ या हल षष्ठी व्रत का त्योहार मनाया जाता है।
रक्षा बंधन और श्रवण पूर्णिमा के छह दिनों के बाद बलराम जयंती मनाई जाती है। इसे राजस्थान जैसे अन्य राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, इसे गुजरात में चंद्र षष्ठी के रूप में जाना जाता है, और ब्रज क्षेत्र में बलदेव छठ को रंधन छठ के रूप में जाना जाता है। भगवान बलराम को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है, जो क्षीर सागर में भगवान विष्णु के हमेशा साथ रहिने वाली शैया के रूप में जाने जाते हैं।
संतान की दीर्घायु और उसकी अकाल मृत्यु को दूर करने वाला हल षष्ठी व्रत इस बार रविवार को मनाया जाएगा। 9 अगस्त छठी तिथि होने के कारण है,
षष्ठी तिथि प्रारम्भ – सुबह 04 बजकर 18 मिनट से (09 अगस्त 2020)
षष्ठी तिथि समाप्त – अगले दिन सुबह 06 बजकर 42 मिनट तक (10 अगस्त 2020)।
हलषष्ठी या हल छठ को जन्माष्टमी पर्व से ठीक दो दिन पहले मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम को बलदेव, बलभद्र और बलदाऊ के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू ज्योतिशास्त्र के अनुसार बलराम को हल और मूसल से खास लगाव था इसीलिए इस त्योहार को हल षष्ठी के नाम से जाना जाता है। बलराम जयंती के दिन किसान वर्ग खास तौर पर पूजा करते हैं। इस दिन हल, मूसल और बैल की पूजा करते हैं। हलषष्ठी या हल छठ पर मूसल, बैल व हल की पूजा की जाती है इसीलिए इस दिन हल से जुती हुई अनाज व सब्जियों व हल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।