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विशेष लेख – अमेरिका के घटना से लोकतंत्र का सही चेहरा उजागर, ट्रंप के कारनामे ने सबको किया बेनकाब

अमेरिका आज विश्व के समाचार के सुर्खियों का केंद्र बिंदु बन गया है।  अमेरिका के इस घटना से लोकतंत्र खतरे मे पड गया है मानने से मेरा ज्यादा मानना है कि लोकतंत्र का सही चेहरा उजागर हुआ है।  यह लोकतंत्र के लिए जिन लोग विधवा विलाप कर रहे है ट्रंप के इस कारनामे ने सबको बेनकाब कर दिया है । इन लोकतंत्र के हिमायतीयो से पूछना चाहिए कि कौन सा यह अमेरिकी राष्ट्रपति जमीनी लेवल के कार्यकर्ता से यहां तक पहुंचा है । महोदय जी ने यह पद धन बल से प्राप्त किया है।  पहले वो अपने कंपनी के सीईओ थे । कुछ नहीं चार साल देश भी चला दिया। फिर देश कहे या कंपनी कैसे किसी को सौंप दे ? लोकतंत्र कुछ नहीं एक भीड़तंत्र से ज्यादा कुछ नहीं है। चलो इन लोकतांत्रिक लोगों ने कैसे सिस्टम पर कब्जा कर लिया है उसे पर बात की जाए।  हमारे देश में तो कहने को तो लोकतंत्र है पर यह पूरी तरह से पूंजीपतियों के कब्जे में है।  छोटा चुनाव भी लाखो का हो जाता है।  विधानसभा लोकसभा तो दूर की कौड़ी है।  इसलिए राज्यसभा मे कई पूंजीपतियों ने उधोगपति इसके सदस्य रहे है । उल्लेखनीय है कि विजय माल्या भी सांसद था यहां से भागने पहले वो राज्य सभा सांसद था।  वैसे ही एक उधोगपति स्व. अमर सिंह कभी महानायक अमिताभ बच्चन के छोटे भाई भी थे   ।उनका भी जब तक जीवित रहे राजनीति मे दबदबा कायम रहा । वो कौन से जमीनी स्तर पर काम करके उपर आये । दक्षिण मे रेड्डी बंधुओं के नाम से राजनीति रही हैं।  फिर दूसरा लोकतंत्र पारिवारिक लोकतंत्र रहता है । इस लोकतंत्र में परिवार का आधिपत्य बना रहता है।  इसका उदाहरण भी हमारे देश में ही है । तीन पीढ़ियों मे प्रधानमंत्री बने है । चतुर्थ मे कुछ तकनीकी कारणों से दूसरे को बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा दल के अंदर जो सीनियर बंदा था उसे न बनाकर उपर से उसे प्रधानमंत्री बना दिया जो कहीं भी चर्चा में नहीं था । बनने वाले को भी आश्चर्य लग रहा था कि वो कैसे बन रहा है।  यही लोकतंत्र की खूबसूरती है न पहले प्रधानमंत्री के समय दल को तववजो दी गई न इस बार तो पूछा भी नहीं गया । यही हाल राज्यो का है विधायक दल का नेता चुना नहीं जाता बल्कि उपर से भेजा जाता है।  अभी राज्यो के चुनाव के समय रात्रि तक किस बंदे का चयन होकर भेजा जायेंगा यह अनिश्चितता हर समय बनी रहती थी ।  आज भी चुनी हुई सरकार को कैसे अस्थिर किया जाए और ऐसा माहौल निर्मित किया जाए कि सरकार असंवेदनशील है यह भी षडयंत्र लोकतंत्र के हिस्सा ही बनता है । जब तक स्वंय सत्ता में रहे तो लोकतंत्र की जय जय सत्ता से हटने के बाद यहां बिलकुल लोकतंत्र नहीं है यह बात भी लोगों ने देखी है।  कुछ नहीं संवैधानिक पदों मे रहने के बाद चुने हुए जनप्रतिनिधि रहने के बाद अगर कोई सर्वोच्च न्यायालय पर चुनाव आयोग पर सेना पर और केंद्रीय एजेंसियों पर विश्वास न करे तो यह मत भी शायद लोकतंत्र का हिस्सा कैसे बन सकता है। यह वही देश है जहां हरियाणा में आयाराम गयाराम के जनक भजनलाल ने सिर्फ पार्टी लेवल बदलकर अपनी सरकार बनाई फिर  इस खेल में भाजपा ने भी यही रूख अपनाया।  बस लोकतंत्र है सब जायज है।  चलो बाजू के मुल्क पाकिस्तान मे चला जाये वहां भी यही कहानी भुटटो परिवार जो अब जरदारी के नाम से राजनीति हो रही है दूसरे तरफ नवाज शरीफ।  यहां तो बीच बीच में सेना का रोल भी प्रधानमंत्री बनाने के लिए अहम रहता है।  वहीं क्रिकेट से राजनीति मे आये इमरान खान जैसे कहा जाता है कि सेना के चलते बने है । यहां भी लोकतंत्र में जागीरदारों की सशक्त भूमिका है करीब करीब भारत मे भी ऐसी ही है ।  वहीं बांग्लादेश में भी शेखमुजीब की पुत्री ही प्रधानमंत्री है ।बस खूबसूरत सा नाम लोकतंत्र दिया गया है।  कुछ नहीं ट्रंप ने अपने शक्ति का प्रदर्शन किया है जैसे कभी सीएए या अभी किसान आंदोलन के माध्यम से भी देश देख रहा है। यह  लोकतंत्र हमारा तुम्हारा हो गया है।  जिसके चश्मे मे जो फिट बैठता है उसे वहीं लोकतंत्र सही लगता है वही ट्रंप के साथ हुआ है।  चलो अनिश्चितता के बादल हट रहे हैं और जो बाइडेन आ रहे है । पर लोकतंत्र शर्मसार नहीं हुआ है इसने गहराई से विचार करनेके लिए हमारे पास प्रश्न छोड दिया है  । बस इतना ही  डा . चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ

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