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Lata Mangeshkar death anniversary – ये कारण था की शो मैन स्व. राजकपूर जैसे को भी लता दीदी के सामने झुकना पडा


डा. वाघ की वाल से आज अपनी बात पर कहां से शुरू करू आज देश ही मूक हो गया मौन हो गया सबकी आवाज उस आवाज के लिए थम सी गई जिसे सुने बिना हमारा दिन ही निकलता नही था । वह मधुर आवाज अब किवदंती ही बन गई। पांच तारीख बसंत पंचमी को देश ने सरस्वती पूजा की और छै तारीख को ही सरस्वती ने रुखसत कर लिया । देश की नज्म से लता दीदी अच्छे से वाकिफ थी । यही देश क्या चाहता है उसी मुताबिक वह संगीत मे हमको दिया करती थी । हर क्षेत्र मे सक्रिय और वह भी पूरी तरह मन से ही हुआ करती थी । यही कारण था की उनकी भागीदारी दिखती थी । यही कारण था की जब भी कोई उनसे मिला तो उनका मुरीद हो जाता था । शायद ही कोई कलाकार हो जिसने इतने लंबे समय तक गाया हो । शायद ही कोई कलाकार हो जिसने इतने संगीतकार के सान्निध्य मे गाया हो जिसको मौका नही मिला वह उसे आज अपना दुर्भाग्य ही समझ रहा होगा । शायद ही कोई कलाकार हो जिसको इतना प्यार मिला हो या कोई लोगो का इतना आदर्श बना हो । अभी लोगो को लता जी के बारे मे बहुत सुनने को पढने को मिल रहा होगा । आज मै उन आयाम पर चर्चा करूंगा जिसे शायद न सुने हो । मूलतः लता जी का परिवार गोवा के मंगेशी गांव के थे । स्व. मास्टर दीनानाथ के पिता स्व. गणेश अभिषेकी गोवा के प्रसिद्ध मंगेशी मंदिर के पुजारी थे । मूलतः उनका सरनेम हार्डीकर था । जिसे बाद मे बदलकर मंगेशी गांव व मंदिर के कारण मंगेशकर कर दिया । बाद मे दीदी ने इस मंदिर संस्थान को एक करोड रूपये मंदिर के लिए दान भी किये । फिर यह लोग हार्डीकर की जगह मंगेशकर के नाम से जाने जाने लगे । जैसे सबको पता है लता जी को कार का बहुत शौक था वही उन्हे फोटोग्राफी का भी बहुत शौक था । पहले यह शौक बहुत महंगा हुआ करता था । लता जी मे क्रिकेट का शौक डूंगरपुर के राजा स्व. राजसिंह डूंगरपुर के कारण जाना । स्व.राजसिंह जी डूंगरपुर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे है । कहा जाता है की इनसे प्यार था पर वह परवान नही चढा । पहले बीसीसीआई आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर थी हालात यह थे की विश्व कप जीतने के बाद भी खिलाडियो को प्रोत्साहन राशि देने के लिए पैसे नही थे । फिर लता जी ने कार्यक्रम कर वह पैसे जुटाए तब कही जाकर इन खिलाडियो को बोर्ड एक एक लाख रूपये दे पाया । फिल्मो मे लता जी के लोगो से पारिवारिक संबंध थे । पर भी इसमे स्व.मुकेश जी से बहुत ज्यादा पारिवारिक संबंध थे । मुकेश जी को अपना भाई मानती थी यहां नितिन मुकेश के लडके का नाम नील दीदी के द्वारा ही रखा गया है । क्योकि उस समय चंद्रमा मे उतरने वाले पहले इंसान अमेरिका के नील आर्म स्ट्रांग थे । नील की आंखे उन जैसे ही थी इसलिए उनके नाम पर दीदी ने रखा था ।मुकेश जी की दुखद मृत्यु लता जी के स्पांसर शो के समय 27 अगस्त सन 1976 मे डेट्रायट मिशिगन मे कार्यक्रम के समय ही दिल का दौरा पढने से हुई थी । उल्लेखनीय है की उक्त आधे गाने को नितीन मुकेश ने पूरा किया था । कहते है ” शो मस्ट गो ऑन ” । दूसरे व्यक्ति और कोई नही संगीतकार स्व. मदनमोहन जी थे । इसलिए वीरजारा के गाना गाने का पैसा नही लिया था । वही किसी से कुछ बातो से अनबन पर भी वह अपने ही स्टैंड मे कायम रहती थी । यही कारण था की शो मैन स्व. राजकपूर जैसे को भी दीदी के सामने झुकना पडा । बहुचर्चित फिल्म संगम के बाद किसी बात पर मतभेद के बाद राजकपूर जी ने दूसरे गायिकाओ से गाना गंवाया दुर्भाग्य से वह फिल्मे सफल नही हो पाई काफी आर्थिक नुकसान हुआ। अंत मे अपनी बहुचर्चित फिल्म बाॅबी के लिए दीदी के पास ही जाना पडा । फिर क्या था वह फिल्म भी सुपरहिट हुई और स्व.ॠषिकपूर का कैरियर भी चल निकला । लोगो का यह मानना दीदी फिल्मो की सफलता की गारंटी थी यह आम बात थी । इसी तरह सुप्रसिद्ध गायक स्व. मोहम्मद रफी भी लता दीदी के उस बात से सहमत नही थे जो उन्होने गाने के लिए रायल्टी की बात की थी । बात इतनी आगे बढ गई की राहे ही बदल गई फिर डुवेट गाना ही बंद कर दिया । अंत मे तीन चार साल बाद रफी जी को डुवेट गाने के लिए आना पड़ा । इस तरह लता दीदी अपने ही शर्त पर काम की । कभी भी राजनीति नही की वह राज्यसभा के लिए मनोनीत सदस्य भी रही । पर यह तय है राष्ट्रवादी थी । जैसे खबरे आ रही है वीर सावरकर जी से उनके पारिवारिक संबंध थे । उन्होने वीर सावरकर जी ने जो गीत लिखा उसे लता दीदी जी के स्वर ने “” सागरात प्राण तलमलला ” को अमर कर दिया । प्रधानमंत्री मोदी जी से व्यक्तिगत संबंध थे । यही कारण था प्रधानमंत्री जी कितने भी व्यस्त रहे पर उनके जन्मदिन पर जरूर फोन करते रहे है । यही कारण था की उन्हे यह व्यक्तिगत रूप से अंतिम संस्कार मे शामिल होकर देश के तरफ से श्रद्धांजलि दी । उल्लेखनीय है की लता मंगेशकर जी छत्तीस भाषाओ मे करीब 36000 हजार गाने गाये है । सामान्यतः एक गाना पांच मिनट का होता है । इस तरह से छत्तीस हजार गाने का समय करीब एक लाख अस्सी हजार मिनट हुए । फिर घंटो मे तीन हजार घंटे और दिन व रात मिलाकर एक सौ पच्चीस दिन रात अनवरत सुनने को चाहिए। अंत मे अभी लता जी के गाने लोग सदियो सुनेंगे और उन्हे याद भी करेंगे । पर अब कोई लता मंगेशकर बनना चाहता है तो चुनौतियां भी बहुत है । शायद ही कोई यह स्थान ले सके ।
सादर नमन
बस इतना ही

डा. चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ



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