क्या आप जानते हैं हम रोते क्यों हैं ?

रोते तो सभी लोग हैं चाहे वह बड़े हो या छोटे, एक छोटे बच्चे के बारे में सोचिये, वह हमेशा रोता ही क्यों रहता है. वह रोता है क्योंकि वही एक तरीका है जिससे बच्चा अपने हाव भाव दिखता है. लेकिन हम बोलना सीखने और बड़े हो के बाद भी रोते हैं! क्यों? हर आंसू का मतलब रोना ही नहीं होता है. हमारी आंखों में पानी हमेशा मौजूद रहता है.
असल में हमारे आंसू तीन तरह के होते हैं –
1 बेसल यानि बुनियादी आंसू
2 रिफ्लेक्स आंसू
3 भावुक आंसू
ये तीनों तरह के आंसू अलग अलग किस्म के हैं लेकिन बनते एक ही तरह से हैं. हमारी आंखों के आईबॉल और आईलिड के बीच लैक्रिमल ग्लैंड होता है. यह ग्लैंड आंसुओं को बनाता और हटाता भी है. बेसल आंसू वो पानी है जो हमारी आंख के कोर्निआ को हमेशा गीला रखता है. दिन में हम 150 – 300 एमएल बेसल आंसू बनाते हैं. आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि हम लगभग एक कप चाय जितने आंसू रोज़ बनाते हैं.
बता दें की रिफ्लेक्स आंसू वे होते हैं जो बाहरी बदलाव से आते हैं. जैसे कि नाम से ही ज़ाहिर है, ये रिफ्लेक्स एक्शन पर हे निर्भर रहते हैं. जैसे आपकी आंख में धूल का जाना या प्याज़ से जलन होना. ऐसा होते ही कॉर्निया दिमाग को सिग्नल देता है कि आंख में पानी की परत सूख रही है, उसे और पानी चाहिए. वह पानी आँख को मिलता है और उसके बाद जो पानी बाहर आता है वह होते हैं रिफ्लेक्स आंसू.
भावुक आंसू सबसे ज़रूरी माने जाते हैं क्युकी वे हमारे मन के भावों से जुड़े होते हैं. वे इसपर निर्भर करते हैं कि हम कैसा महसूस कर रहे हैं. भावुक आंसुओं में एसीटीएच हॉर्मोन और इंसेफ्लिन पेनकिलर होता है जिनकी वजह से से रोने के बाद हमें हल्का और बेहतर महसूस होता है. वे मन की पीड़ा मिटने में भी मदद करते हैं. कई बार चोट लगने पर जब हम रोते हैं, वहां भी आंसू पेनकिलर का काम करते हैं.
वही बहुत सारी रीसर्च कहती हैं कि मर्दों के मुक़ाबले औरतें ज़्यादा रोती हैं. मनोवैज्ञानिक विलियम फ्रे की 1982 की रिसर्च के मुताबिक़, महिलाएं औसतन महीने में पांच से ज़्यादा बार रोती हैं और उनके मुक़ाबले मर्दों का औसत डेढ़ बार भी नहीं है. जब कोई महिला रोती है तो औसतन पांच से छह मिनट रोती है. उनके मुक़ाबले आदमी रोने में दो से तीन मिनट ही ख़र्च करते हैं.
अगली बार जब आप रोएंगे तो आपको पता होगा कि आप क्यों रहे हैं और कौनसी तरह के आंसू आपकी आंखों में छलक रहे हैं.