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संपादक की कलम से – लफ्ज कम मायने गहरे, जानें PCC चीफ मोहन मरकाम की खास बातें

खरामा खरामा वक्त अपनी रफ़्तार बढ़ता चला और ढाई बरस गुज़र गए हैं। यह ढाई बरस उस प्रदेश के हैं जहां पंद्रह बरसों के बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी, जनघोषणा पत्र लोकलुभावन वायदों के बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी। राजनैतिक विश्लेषकों ने भी माना कि आख़िर वे वादे दो जन-घोषणा के साथ सामने आए, उसने कमाल दिखाया और वो फिरकी चली कि भाजपा उस रसातल पर गई कि अब तक संज्ञा शून्य अगर नहीं है तो राजनैतिक चेतना सक्रियता है ऐसा लिखा जाए इसका भी कोई संदर्भ प्रसंग नहीं दिखता।प्रदेश के नेतृत्व की एका,कार्यकर्ताओं की मेहनत,बूथ तक की सधी रणनीति, पंद्रह बरसों की सत्ता से उबी और उभरी नाराज़गी ने समां बांध दिया।

बिलाशक सत्तर सीटों पर जा पहुँची कांग्रेस के लिए यह मुक़ाम हासिल करने में वे वोट भी शामिल थे जिन्हें भाजपा का कैडर वोट कहा जाता है। अब जबकि ढाई बरस हो गए हैं, सत्ता तक पहुँचाने वाला संगठन और संगठन का आधार कार्यकर्ता कहाँ और किस आलम में है..इस ढाई बरस में क्या संगठन के लिए चुनौतियाँ बढ़ गई हैं.. क्या सत्ता और संगठन के बीच समन्वय संतुलन सधा हुआ है.. क्या यह दावे से कहा जा सकता है कि काम करने के जो डेढ़-दो बरस बचे हैं उनमें वह कारआमद राह निकल आएगी कि सत्ता पर फिर कांग्रेस सवार दिखे और मीटर फिर से सत्तर या सत्तर पार हो ? 

   लंबे समय विपक्ष में रहे संगठन का जब सत्ता से राब्ता होता है तो माना जाता है कि यह संगठन के लिए कई बार नाज़ुक मसला हो जाता है। इसके पीछे सत्ता की अपनी धमक अपना ग्लैमर होता है। नक्सल प्रभावित बस्तर के कोंडागांव से विधायक मोहन मरकाम को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जवाबदेही हासिल है, राजनीति से पहले बेहद सफल जीवन बीमा अभिकर्ता रहे मोहन मरकाम हर एलआईसी एजेंट का सूत्र वाक्य “बीमा आग्रह की विषयवस्तु है” को कुछ यूँ रटे बैठे हैं कि वो छुपाए नही छूपता.. उनकी बातों के भाव में आग्रह और शब्दों में विनम्रता का पूट इतना अधिक होता है कि उनकी बातों को अधिक सजगता से सूनने की जरुरत होती है। 

   बस्तर बाड़ा नाम के अपने बंगले में मौजूद पीसीसी चीफ मोहन मरकाम से सवाल होता है कि, कार्यकर्ताओं में असंतोष है.. नाराज़गी है, पीसीसी चीफ़ इसका जवाब यूँ देते हैं 

“हाँ, ढाई बरस आख़िर कई चुनाव उप चुनाव और अचानक आई प्राकृतिक आपदा से जूझने में गुजरे हैं.. लेकिन हाँ.. असंतोष और नाराज़गी है..लेकिन सम्हाल लेंगे.. समझा लेंगे”

  मोहन मरकाम से सवाल हुआ कि घोषणा पत्र के कई वायदे अधूरे हैं, जैसे वो जनशिक्षकों का मसला.. बेरोज़गारी भत्ता का मसला.. कार्यकर्ता के पास इस मसले का क्या जवाब है ?

  पीसीसी चीफ़ मोहन मरकाम ने कहा 

“कोरोना काल में देश में बहुत कुछ ठिठक गया है…लेकिन कई अहम वायदे पूरे हुए हैं.. ज़ाहिर है कई बचे हैं.. आप जो बता रहे हैं वो मुद्दे मैं जानता हूँ.. आख़िर कार्यकर्ता तो मैं भी हूँ न..प्रकृति एक बहुप्रयोगी शब्द है.. और आप कई बार प्रकृति के आगे बेबस होते हैं”

  प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम से पूछा गया कि ये ढाई साल का क्या मसला है.. जवाब आया –

“मुझे नहीं पता है.. और वैसे भी भला मुझे क्यों पता होना चाहिए..मैं बहुत छोटा कार्यकर्ता हूँ”

  मंत्रियों के प्रभार ज़िलों में परिवर्तन ख़ासकर कमोबेश पूरा बस्तर ही कवासी लखमा के हवाले करने के मसले पर पीसीसी चीफ़ मरकाम ने कहा –

“कवासी सहज नेता हैं.. ग्रामीणों से लोगों से तुरंत घुलमिल जाना उनका वह स्वभाव है जो सीखने लायक़ है.. हाँ प्रशासनिक कुछ पेंच हो सकता है..उम्मीद करता हूँ मिल जुल कर सम्हाल लेंगे हम लोग”

   संवाद के ठीक बाद जबकि रुखसत के वक्त आया,नजर उस मिट्ठू पर टिकी जो पिंजरे से बाहर मगर पिंजरे पर बैठा था। मोहन मरकाम ने मुस्कुराते कहा –

“उड़ना ना भूल जाए.. वैसे पिंजरा छोड़ जाएगा कहाँ”

याज्ञवल्‍क्‍य वशिष्ठ वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं उनके लेख पत्र पत्रिकाओं में।प्रकाशित होते हैं

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