विशेष लेख – चीन जैसा देश डोकलाम मे सालो खडा होने के बाद वापस हो गया, डॉ वाघ की वाल से

डा. वाघ की वाल से आज अपनी बात पर मै विजय दिवस के उन पहलूओ पर बात करूंगा जिस पर चर्चा तो हुई पर वह कभी जनसाधारण के सामने नही आ पाया । इस देश का आजादी के बाद से सन 2014 तक का इतिहास रहा है सेना ने जंग जीता पर हमारे नेताओ ने टेबल पर जंग हारी । आजादी के तुरंत बाद ही यह अहिंसा नीति ने देश को काफी नुकसान पहुंचाया है । पहले तो काश्मीर से कबाइलियो को जहां सेना खदेड़ने मे सफल हो रही थी की पूरी तरह से खदेड पाते तो सेना से युद्ध विराम करवा दिया गया जिसका नतीजा यह निकला की आज भी कुछ हिस्सा पीओके के रूप मे यह पाकिस्तान के पास है । फिर वही गल्ती हम हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगाते रहे चीन हमारे देश मे चवालीस हजार किलोमीटर बंजर जमीन जैसे तत्कालीन नेता कहते थे को कब्जा कर लिया । दुर्भाग्य से उस समय भी चीन को माकूल जवाब देने के लिए सेना को खुला नही छोडा गया । नो फायर नो फायर के बीच हम पीछे सरकते गये । वही कहानी सन पैंसठ मे भी हुई पाक ने अपनी खोई हुई जमीन ताशकंद समझौते से पुनः वापस लेने मे सफलता पाई ली । हमने जमीन भी खोई और हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व.लाल बहादुर शास्त्री जी को भी खोया । अब तक पाकिस्तान यह भलीभांति समझ चुका था युद्ध मे जीते तो बल्ले बल्ले हारे तो भी बल्ले बल्ले क्योकि कूटनीतिक तौर पर हिंदुस्तान हर समय कमजोर पडता है । जिस इकहत्तर के युद्ध पर कहा जाता है की हमने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर लिए पर वास्तविकता यह है की हमने बांग्लादेश के रूप मे कोई अच्छा मित्र भी नही पाया है । इकहत्तर के युद्ध मे हमारी सफलता के साथ असफलता की चर्चा क्यो नही की जाती जो हमारे देश का इतिहास बदल देती भूगोल बदल देती । उस समय तो बांग्लादेश बन गया पर हम लोग तो फिर ठगे के ठगे रह गए। आज भी यह बांग्लादेशी जो अहसान फरामोश है जो यहां घुसपैठ कर रहे है वही दूसरी तरफ अल्पसंख्यक हिंदूओ को प्रताडित कर रहे है वही हमारे मंदिरो को ध्वस्त भी कर रहे है । इकहत्तर मे हमारी सेना ने जहां पाकिस्तान के बहुत बडे भूभाग पर भी कब्जा कर लिया और विश्व मे नब्बे हजार सैनिक को बंधक बनाने का कीर्तिमान भी रचा। पता नही हम किस मिट्टी के बने थे । यह नब्बे हजार सैनिको को पाला पोसा वही हमारे आकाशवाणी से इनके कुशलता के पैगाम भी उनके घरो तक पहुचाया जा रहा था । यह युद्ध फील्ड मार्शल स्व. सैम मानेकशॉ और लेफ्टिनेंट जनरल स्व.जगजीत सिंह के कुशल नेतृत्व मे जीता गया । पर राजनीतिक फायदा लेने मे भी यह नेता लोग सामने आ गए। पर हकीक़त यह है की हमने फिर टेबल मे वार्ता हारी । मै तो पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री स्व. जुल्फिकार अली भुट्टो की तारीफ करूंगा विषम परिस्थितयो मे भी अपने पक्ष मे वार्ता का रूख अपने तरफ करने मे सफल हुए । जीती हुई जमीन नब्बे हजार सैनिक हमने काश्मीर को लेकर क्यो नही वापस किये । हमारी वार्ता का शर्मनाक पहलू यह भी है की हमने अपने मात्र चौवन सैनिको को भी नही छुडाया जो आजतक अगर जीवित भी होंगे तो पाक जेल मे या तो प्रताडित हो रहे है या दुर्भाग्य जनक हालत मे विक्षिप्त होकर कही शहीद न हो गए हो । इन चौवन सैनिको के परिवार ने हर जगह हर मंच पर अपनी आवाज रखी पर हमारे खुदगरज सियासत दानो के कानो मे जूं तक नही रेंगी । फिर यह जब विजय दिवस पर गाल बजाते है तो दुख ही लगता है । इसलिए पाकिस्तान को मालूम था कुछ भी कर लो कुछ नही होने वाला है । इसलिए उन्होने कारगिल भी कर लिया वही हमारी यह नीति की हम अपने ही जमीन से युद्ध करने के लिए बाध्य करती थी । आज तक हमे हर समय हमारे शहीदो के शव नृशंसता पूर्वक मारकर शहीद के शव को क्षत विचछत कर हर समय पाकिस्तान लौटाने का दुःसाहस करता था चाहे वह लेफ्टिनेंट सौरव कालिया का शव रहा हो या शहीद हेमराज का जिसे धड से अलग कर भेजने का कुकृत्य किया था । हमारे जाबांज सियासत दान नेताओ ने पुरजोर गाल बजाकर इस घटना की निंदा की थी । यही हाल आतंकवादी घटनाओ के समय हुआ मुंबई के समय सेना द्वारा कहने के बाद भी बस हम लोग ” कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ” । हर आतंकवादी घटनाओ के बाद कडे शब्दो मे विरोध का इनके डायलाग सुनते सुनते शर्म महसूस होने लगी थी । पर सन दो हजार चौदह के बाद से पहले बार देश के नागरिको को फख्र महसूस होने लगा सेना को जहां आधुनिकीकरण किया गया वही सेना के हाथ खुले छोड दिये गए । नही तो काश्मीर मे सेना के जवान को कोई भी पत्थर मार कर हमला करता था तो कोई भी मारपीट करने का दुःसाहस कर देता था । न इन सात सालो मे न कोई आतंकवादी घटना हुई वही सर्जिकल स्ट्राइक ने पाक सेना के साथ आतंकवादियो मे भी दहशत पैदा हो गई । हालात यह है की जो पाक हमारे शहीदो के शव क्षत विच्छत कर लौटाता था उसे आज के ग्रूप कमांडर अभिनंदन को सम्मान पूर्वक लौटाने को बाध्य होना पड़ा। जनरल बाजवा के टांग कांप रहे थे आज भी इमरान खान मोदी जी के फोन के प्रतिक्षा मे है यह आमूल परिवर्तन है । चीन जैसा देश डोकलाम मे सालो खडा होने के बाद वापस हो गया । यह है स्वाभिमान देश की रक्षा नीति विदेश नीति । कुल मिलाकर सेना के साथ नेतृत्व भी मजबूत होना जरूरी है जो पहले बार इस देश को मिला है । कल तक हम चीन व पाक की शिकायत लेकर आका के पास गिडगिडाया करते थे आज बिल्कुल उल्टा है यह दोनो देश हमारी शिकायत करने को बाध्य है यह हमारी मजबूती दिखाता है । यह विजय दिवस सिर्फ सेना और देश का है ।
बस इतना ही
डा. चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ