छत्तीसगढ़

नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ छग में भी हजारों लोग उतरे सैकड़ों पर, वाम के नेतृत्व में किया विरोध प्रदर्शन

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भाकपा और भाकपा (माले)-लिबरेशन के आह्वान पर छत्तीसगढ़ में नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ हजारों लोग सड़कों पर उतरे और इसके खिलाफ अपना नागरिक प्रतिवाद दर्ज किया। इस आंदोलन में कई सामाजिक और धार्मिक संगठन भी शामिल हुए, जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता पर अपनी अटूट आस्था दुहराई और धर्म के आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया।

इन सभी संगठनों ने दिल्ली में आज वामपंथी नेताओं सहित इतिहासकार रामचंद्र गुहा और अन्य बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी और देश के अन्य हिस्सों में चल रहे आंदोलन के बर्बर दमन की भी तीखी निंदा की और आरोप लगाया कि संघी गुंडे पोलिस की वर्दी पहनकर आंदोलनकारियों पर हमले कर रहे हैं और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

ये प्रदर्शन राजधानी रायपुर सहित अम्बिकापुर, भिलाई, धमतरी, बिलासपुर आदि शहरों में आयोजित किये गए। धमतरी में आयोजित प्रदर्शन को संबोधित करते हुए माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने आरोप लगाया कि संघ नियंत्रित भाजपा सरकार भारत में हिटलर के नक्शेकदम पर चल रही है और धार्मिक घृणा के आधार पर नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू करने की कोशिश कर रही है।

इस तरह के कदमों से देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र खत्म होगा और सामाजिक तनाव बढ़ेगा, जो देश की एकता-अखंडता के लिए खतरनाक साबित होगा और देश के बहुलतावादी चरित्र को ही नष्ट करेगा। भाजपा की मोदी-शाह सरकार के इस कदम को संविधानविरोधी बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान धर्म या क्षेत्र के आधार पर न नागरिकता तय करती है और न ही एक इंसान के रूप में उनसे कोई भेदभाव करती है।

उन्होंने आरोप लगाया कि यह कानून स्पष्ट रूप से मुस्लिमों को नागरिक-अधिकारों से वंचित करके हिन्दू राष्ट्र के गठन की आरएसएस की राजनैतिक परियोजना का हिस्सा है, जिसे हमारे देश कभी स्वीकार नहीं करेगी। यहां की सभा को समीर कुरैशी और भाकपा के सत्यवान यादव ने भी संबोधित किया।

अम्बिकापुर में माकपा नेता बालसिंह ने केंद्र द्वारा भाजपा-शासित राज्य सरकारों को नजरबंदी शिविर बनाने के निर्देश दिए जाने की भी तीखी आलोचना की और कहा कि नागरिकता के संबंध में इस सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदमों से साफ है कि वह इस देश की जनता पर धर्मनिरपेक्ष संविधान की जगह मनुस्मृति को लागू करना चाहती है। यहां प्रदर्शन का नेतृत्व ललन सोनी, कृष्णकुमार, सुरेंद्र लाल सिंह, जीतेन्द्र सोढ़ी आदि माकपा नेताओं ने किया।

दुर्ग में बृजेन्द्र तिवारी, वकील भारती, सीआर बख्शी, शांत कुमार, डीवीएस रेड्डी, गजेंद्र झा आदि ने, बिलासपुर में रवि बेनर्जी, एन के कश्यप, शौकत अली, एस एस सहगल आदि ने, रायपुर में एम के नंदी, धर्मराज महापात्र, एस सी भट्टाचार्य आदि ने इन विरोध कार्यक्रमों का नेतृत्व किया।

सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यह देश के नागरिकों का दुर्भाग्य है कि जिस सरकार को उन्होंने चुना, वही सरकार आज आम जनता से अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए कह रही है, जबकि इस देश के प्रधानमंत्री के पास अपनी पढ़ाई का प्रमाणपत्र तक नहीं है। उन्होंने कहा कि इस देश के 38 करोड़ नागरिकों के पास जन्म-प्रमाण पत्र तो क्या, किसी प्रकार का आइडेंटिटी प्रूफ तक नहीं है।

उन्होंने कहा कि असम की विवादास्पद एनआरसी तैयार करने में ही 11 साल लग गए, जबकि मोदी सरकार अगले वर्ष अप्रैल-सितम्बर के 6 महीनों में ही पूरे देश का नागरिकता रजिस्टर तैयार करना चाहती है। इससे पूरे देश में अफरा-तफरी और गृहयुद्ध के हालात पैदा हो जाएंगे।

वाम नेताओं ने कहा कि यह मामला हिन्दू-मुस्लिम का नहीं है, जैसा कि सरकार बताना चाहती है, बल्कि संविधान की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की बुनियादी प्रस्थापना की रक्षा का है, जिसे यह सरकार कुचलना चाहती है। आम जनता के नागरिक-अधिकारों की रक्षा की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए वामपंथी पार्टियां कटिबद्ध है।

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