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पुरखा के सुरता – स्वप्न दृष्टा डॉ खूबचन्द बघेल की जयंती पर विशेष लेख

आज 19 जुलाई को छतीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वप्न दृष्टा डॉ खूबचन्द बघेल की जयंती है। उन्होंने नागपुर मेडिकल कालेज से उस जमाने की डॉक्टर डिग्री एम एल सी की पढ़ाई की। महात्मा गांधी के आंदोलन से प्रभावित होकर वे सरकारी सर्विस को छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। साल 1942 के आंदोलन में शामिल होने के कारण उन्हें तीन सालों की जेल हुई। आजादी के बाद साल 1950 में विधायक चुने गए। इसके बाद साल 1967 में राज्यसभा सदस्य भी चुने गए।

डॉ बघेल को उनके आंदोलनों, उनके समाज सुधार के लिए याद किया जाता है। छत्तीसगढ़ में होली त्यौहार में किसबिन नाच हुआ करती थी। किसबिन शब्द से तातपर्य वेश्या से है। धनी लोग अपना रुतबा दिखाने के लिए यह नाच कराते और खुद लुटाते तथा गांव वालों को भी लुटवाते थे। इस नाच को बंद कराने के लिए उन्होंने ग्राम महुदा तरपोगी में सफल आंदोलन किया। साल 1956 में उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना की सपने को साकार करने के लिए राजनांदगांव में सम्मेलन करवाया। सम्मेलन में छत्तीसगढ़ महासभा का गठन कर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास किया गया।

वे कुर्मियों के मनवा फिरके से थे। उनकी इच्छा थी कि भारत भर के समस्त कुर्मी एक होकर एक दूसरे से वैवाहिक सम्बन्ध बनाएं। इसकी एक वजह छत्तीसगढ़ के कुर्मी और साहू समाज में पायी जाने वाली सिकलिंग बीमारी भी रही होगी। एक डॉक्टर होने के कारण उन्हें अच्छी तरह से पता था कि दूरस्थ लोगों से वैवाहिक सम्बन्ध से सिकलिंग बीमारी को खत्म किया जा सकता है। इन्हीं वजहों से उन्होंने अपनी बेटी का ब्याह बिहार के कुर्मी से किया। उनके इस कदम से तत्कालीन मनवा कुर्मी समाज में हड़कंप मच गया। उन्हें जाति से बाहर भी कर दिया गया था।

डॉ बघेल का वह कदम ना सिर्फ उस समय के कुर्मी समाज के लिए बल्कि अन्य समाजों के लिए भी अचरज भरी थी। उस समय इसे किसी ने स्वीकार नहीं किया। मगर बाद में उनके इस फैसले को ना सिर्फ स्वीकार किया बल्कि अपने अपने समाज में भी लागू किया गया। उन्होंने जाति वाद पर भी कड़ा प्रहार करते हुए पंक्ति तोड़ो अभियान चलाया था।

(इस विशेष लेख के लेखक अजय वर्मा शासकीय सेवक हैं, उनके फेसबुक वाल से साभार)

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