पर्युषण पर्व जैन समाज में सबसे महत्वपूर्ण, जानिये क्या हैं महत्व
पर्युषण पर्व जैन समाज में सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इसे पर्वाधिराज भी कहा जाता है। पर्युषण का अर्थ मन के सभी विकारों का शमन करना है। यह पर्व अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है।
इस पावन अवसर पर 10 दिनों तक विभिन्न व्रतों का पालन किया जाता है। यह पर्व प्रकृति से जुड़ने की सीख देता है। यह त्योहार समस्त संसार के लिए मंगलकामना का संदेश देता है। पर्युषण पर्व को आत्मा की शुद्धि का पर्व माना जाता है।
इस पर्व के दौरान धर्मावलंबी जैन धर्म के पांच सिद्धांत अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक धन जमा न करना) व्रत का पालन करते हैं। इस पर्व में दान का विशेष महत्व है।
इस पर्व में संकल्प लिया जाता है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जीवमात्र को कभी भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुंचाएंगे। किसी से कोई बैर भाव नहीं रखेंगे। संसार के समस्त प्राणियों से जाने-अनजाने में की गई गलतियों के लिए क्षमा याचना कर सभी के लिए मंगलकामना की जाती है।
दस दिनों तक चलने के कारण इसे दशलक्षण पर्व कहा जाता है। उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य के माध्यम से जैन धर्म के अनुयायी आत्मसाधना करते हैं।
श्वेतांबर समाज आठ दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जिसे अष्टान्हिका कहते हैं। दिगंबर समाज 10 दिन तक इस पर्व को मनाते हैं जिसे दसलक्षण कहते हैं। इस अवसर पर जैन संत समाज को पर्यूषण पर्व की दशधर्मी शिक्षा को अनुसरण करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। इस दौरान कई जातक निर्जला व्रत भी करते हैं।