शरद पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजन, जानिये शुभ मुहूर्त एवं शरद पूर्णिमा की तिथि
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। यह पूर्णिमा अत्यंत ही खास मानी जाती है। प्राचीन काल से ही शरद पूर्णिमा को चमत्कारी माना गया है। इसी रात से ही हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है और ठंड का आभास होना शुरू हो जाता है।
माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही धन की देवी मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसी कारण इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी का विधिवत पूजन करने से जीवन भर मां लक्ष्मी का आर्शीवाद बना रहता है। तो आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व और कैसे मनाते हैं शरद पूर्णिमा
तिथि एवं शुभ मुहूर्त
इस बार शरद पूर्णिमा का पर्व 13 अक्टूबर 2019 को मनाया जाएगा
शरद पूर्णिमा चन्द्रोदय का समय – शाम 5 बजकर 56 मिनट (13 अक्टूबर 2019) पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – रात 12 बजकर 36 मिनट से (13 अक्टूबर 2019) पूर्णिमा तिथि समाप्त- रात 2 बजकर 38 मिनट तक (13 अक्टूबर 2019)
शरद पूर्णिमा को कामुदी महोत्सव भी कहा जाता है। कहते है कि द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण धरती पर आए तो मां लक्ष्मी राधा के रूप में उनके साथ आई थीं। लेकिन जब श्राप के कारण श्री कृष्ण राधा और गोपियों से दूर हो गए थे। तब सभी गोपियों और राधा जी ने श्री कृष्ण को वापस बुलाने के लिए मां कात्यायनी की आराधना की थी। शरद पूर्णिमा की रात को ही श्री कृष्ण ने बंसी बजाकर गोपियों और राधा जी को अपने पास बुलाया और उनके साथ महारास किया था। इसी कारण इस दिन को रास पूर्णिमा और कामुदी महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन इंद्र देव और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। कुछ परम्पराओं कहा जाता है कि इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय जी का भी जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को कुछ जगहों पर कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। उस दिन भगवान कार्तिकेय की उपासना से वाद- विवाद, जमीन जायदाद संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलती है। इसिलिए इस दिन कार्तिकेय जी की आराधना भी अतिफलदायी मानी गई है।
ऐसे करें पूजा
- शरद पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठें उसके बाद नहाकर साफ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद एक आसन पर लाल कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी को स्थापित करना चाहिए। मां लक्ष्मी को स्थापित करने के बाद उन्हें लाल पुष्प, नैवैद्य, इत्र, सुगंधित चीजें अर्पित करें।
- इसके बाद लक्ष्मी जी के मंत्र और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। इसके बाद मां लक्ष्मी की धूप व दीप से आरती उतारें और उन्हें खीर का भोग लगाएं।
- इसके बाद किसी ब्राह्मण को खीर अवश्य खिलाएं और रात के समय इस खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखें
5.खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने के बाद अगले दिन उस खीर को स्वंय भी खाएं और परिवार के लोगों में भी बाटें।